समाजसेवी हरिनारायण मेणवाल, शिव प्रसाद सोनी जैसे लोग पौष बड़े, गुलगुले और खीचड़े का भोग लगा गरीबों में बांटते। गली-मोहल्लों-चौराहों पर लकड़ी का अलाव जला लोग देर तक तापते रहते। 31 दिसम्बर की रात में जयपुर होटल, न्यू होटल, रुस्तमजी का रॉयल होटल, केसरे हिन्द होटल और जयपुर क्लब में डांस और डिनर पार्टियां होती। एक जनवरी 1919 को प्रथम विश्व युद्ध में विजय की खुशी में नाहरगढ़, सिटी पैलेस , अलबर्ट हाल, ईश्वर लाट, आमेर किला व बाजारों को गैस की बिजली से रोशन कर सजाया गया और स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों को लड्डू बांटे गए। कु छ कैदियों को रिहा करने के साथ कुछ की सजा में कमी की गई। सवाई राम सिंह, माधोसिंह व सवाई मानसिंह भी एक जनवरी की रात में अंग्रेज अफसरों, सामंतों व हाकिमों को भोज देते।
सन 1935 में हिन्दी, अंग्रेजी व उर्दू में छपी जयपुर गजट स्मारिका में नव वर्ष पर आयोजित समारोह में सवाई मानसिंह द्वितीय के भाषण देने का उल्लेख है। बाद में सवाई मानसिंह ने सिटी पैलेस के बजाय खासा कोठी में नए साल की पार्टी देना शुरू किया। 26 दिसम्बर 1926 को जयपुर में पहली बार बिजली आई तब अगली एक जनवरी 1927 को नव वर्ष पर सरकारी इमारतों और रेलवे स्टेशन को बिजली से रोशन किया गया। नव वर्ष की बधाई का स्टेशन पर बैनर भी लगाया गया। सियाशरण लश्करी के मुताबिक उन दिनों राम प्रकाश नाटक घर में पारसी कम्पनी भी रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम करती।
रियासत में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को ब्रिटिश सरकार की ओर से दी गई उपाधियों को महाराजा नव वर्ष पर प्रदान करते। सन 1899 व 1900 में पूरे भारत के अकाल की चपेट में आने की वजह से दो साल तक नए साल का जश्न नहीं मनाया गया। 7 सितम्बर 1922 में सवाई माधोसिंह की मृत्यु पर छह माह का राजकीय शोक होने से 1 जनवरी 1923 को नए साल का समारोह नहीं हुआ।