ये कहना है सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशुतोष दुबे का। उन्होंने पत्रिका से बातचीत में बताया कि कूलर में लगाए जाने वाले घास के पैड एक साल में खराब हो जाते हैं, जिससे बदलने और बचत के कारण लोग हनीपैड का प्रयोग कर रहे हैं। जोकि हानिकारक साबित हो रहा है। दरअसल हनीपैड में ज्यादा नमी के कारण और कई सालों तक न बदले जाने के कारण इसमें डेंगू मच्छर के लार्वे के पनपने की स्थिति ज्यादा रहती है। क्योंकि उपयोग के बाद जब कूलर बंद कर रखते हैं तो लार्वा पैड में दुबका रहता है और अगले बरस पानी मिलते ही सक्रिय हो जाता है।
कूलर सांस रोगियों के लिए हानिकारक
डॉ. आशुतोष दुबे ने बताया कि कूलर की घास को साल में कम से कम दो बार बदलना चाहिए। क्योंकि नमी की वजह से इसमें फंगस की मात्रा बढ़ जाती है। फंगस में पौटेशियम होता है, जो सांस रोगियों के लिए नुकसान देह है। इसलिए सांस रोगियों के लिए कूलर नुकसान दायक है।
गत्ते और नकली घास से बनते हैं हनी पैड
हनी पैड को विशेष प्रकार के गत्ते और फाइबर रेशों (कृत्रिम घास) से तैयार किया जाता है। सामान्य घास के पैड जहां दो सेंटीमीटर चौड़े होते हैं वहीं हनी पैड की मोटाई दो से तीन इंच तक होती है। एक बार लगाने पर पांच साल तक यह खराब नहीं होने के साथ ही महंगे भी होते हैं।