याचिकाकार्त के एडवोकेट राजीव सुराणा ने बताया कि प्रार्थी सोसायटी में पहले मैनेजर और बाद में वाइस प्रेसीडेंट के पद पर रहा था। एसओजी ने उसे 25 मई,2019 को गिरफ्तार किया और 22 जुलाई,2019 को चार्जशीट पेश की थी लेकिन,यह चार्जशीट अधूरी थी। कोर्ट ने 22 जुलाई,2019 को अधूरी चार्जशीट पर ही प्रसंज्ञान ले लिया था। इस प्रसंज्ञान आदेश को रिविजन में चुनौती दी गई। इसके लिए दलील दी गई कि कानूनी तौर पर अधूरी चार्जशीट को चार्जशीट नहीं माना जा सकता और इस आधार पर प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता। रिविजन कोर्ट ने 16 जनवरी,2020 को प्रसंज्ञान आदेश को रद्द कर दिया था और केस को पुन: रिमांड कर दिया था। 19 सितंबर,2019 को प्रार्थी ने एसीएमएम कोर्ट से आरोप तय करने की गुहार भी की लेकिन,कोर्ट ने अधूरी चार्जशीट के आधार पर आरोप तय करने से इनकार कर दिया। एसओजी ने अब तक पूरी चार्जशीट पेश नहीं की है और चार्जशीट पेश करने के लिए निर्धारित 90 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। प्रार्थी 90 दिन पूरे होने के बाद 168 दिन से न्यायिक हिरासत में जेल में गुजार चुका है इसलिए उसे सीआपीसी की धारा-167(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत पर रिहा किया जाए। अदालत ने जमानत अर्जी मंजूर करते हुए प्रार्थी को 10 लाख रुपए के व्यक्तिगत मुचलके और 5-5 लाख रुपए की दो जमानत पेश करने पर रिहा करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह जमानत आदेश फाइनल चार्जशीट पेश होने तक ही प्रभावी रहेगा। एसओजी प्रार्थी को फाइनल चार्जशीट के आधार पर आवश्यक होने पर गिरफ्तार करने को स्वतंत्र होगी और प्रार्थी भी नियमित जमानत की अर्जी पेश करने को स्वतंत्र होगा।