दरअसल जयपुर में पुलिस ने चार करोड़ 19 लाख रुपए बरामद करते हुए दो बड़े सटोरियों को कोतवाली क्षेत्र से पकडा था। इतना पैसा देखने के बाद एक बार तो पुलिस के भी होश उड गए थे। बाद में पूछताछ में पता चला कि यह पैसा कई तरीकों से उन तक पहुंचाया गया था। यह पैसा अलग—अलग छोटे बुकियों को बताया जा रहा है जो मैच के दौरान सट्टे की लाइन का आईडी और पास वर्ड लेते थे। इस तरह के करीब पच्चीस बुकियों के नाम और नंबर जयपुर पुलिस को भी मिले हैं। गिरफ्तार आरोपियों ने फोन में जो ग्रुप बना रखे थे उनके जरिए एक समय में 321 लोगों को सट्टा खिलाया जा रहा था। यह तो एक बुकी के जरिए था। इस तरह के बीस से पच्चीस बुकी एक समय में काम कर रहे थे। ऐसे में एक समय में हजारों लोगों को एक साथ सट्टा खिलाया जा रहा था। सभी से रुपए पहले ही आनलाइन ले लिए जा रहे थे। पुलिस का मानना है कि चार करोड़ से ज्यादा जो राशि बरामद की वह आनलाइन पेमेंट और अन्य माध्यमों से ही सटोरियों तक पहुंची थी।
सट्टे की लाइन से इस तरह होता है काम
पुलिस ने बताया कि सट्टे की लाइन लेने का मतलब है कि लाइव मैच से पहले ही सटोरियों को पता चल जाता है कि अगली बॉल पर क्या होने वाला है। यही कमाई का जरिया होता है। सोशल मीडिया ग्रुप पर जो लोग सटोरियों से जुड़े रहते हैं वे इसी तरह सट्टा खेलते हैं। दरअसल इस पूरे खेल के पीछे तकनीक का हाथ है। लाइव मैच जो दर्शकों के टीवी पर आता है वह एक से डेढ़ बॉल के बाद आता है। सटोरियों को यह पहले ही पता चल जाता है कि अगली बॉल पर कौन आउट हो रहा है या फिर कितने रन बनने वाले हैं। इसी तकनीक को लाइन लेना कहा जाता है। लाइन लेने के बाद सटोरियों को यह सब पहले ही पता चल जाता है। इसी लाइन को लेने के लिए लाखों करोड़ों रुपए तक खर्च कर दिए जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पुलिस जो सट्टे के खेल उजागर करती है वह बहुत ही कम है। उंट के मुंह में जीरा वाली कहावत भी इस कार्रवाई के आगे बेहद बड़ी है।
सब कुछ आन लाइन, कॉल से बात ही नहीं, इसलिए बढ़ रही चुनौती
पुलिस अफसरों का कहना है कि पिछले चार से पांच साल से सटोरियों को दबोचने में बहुत ही ज्यादा चुनौती का सामना करना पड रहा है। दरअसल पहले सटोरिए फोन पर बात करते थे तो उसे रिकॉर्ड किया जा सकता था और ज्यादा कार्रवाई की जाती थी। लेकिन चार पांच साल से सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर सट्टा खिलाया जाता है। हर टिप को मैसेज के जरिए ही दिया जाता है। एक मैसेज हजारों लोग देखते हैं। इसी के आधार पर खेल बिना किसी कॉल के आगे बढ़ता रहता है। यहां तक कि कुछ ग्रुप तो हर मैच के तीन हजार रुपए तक ले रहे हैं। पहले रुपए उनको आनलाइन भेजे जाते हैं तो उसके बाद ग्रुप में जोड़ा जाता है। सबसे बड़ी परेशानी वाली बात यह है कि इस तरह के ग्रुप लगातार बढ़ रहे हैं। पुलिस के लिए लगातार चुनौती बनते जा रहे हैं।