भले ही मस्ती और धूम-धड़ाके वाला लगे, लेकिन यह डांस पूरी तरह से आस्था से जुड़ा है। दरअसल, छत्तीसगढ़ में एक सतनामी समुदाय है, जो संत शिरोमणी बाबा घासीदास को पूजता है और इन्हे इस सतनामी पंथ का संस्थापक और प्रणेता मानता है। पंथ के लिए किया जाता है इसीलिए इसे ’पंथी’ कहा जाता है।
क्यों होता है पंथी नृत्य-
पंथी नर्तक सलीम जांगडे़ ने बताया कि संत शिरोमणी बाबा घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। उन्होंने सतनामी पंथ की नीव रखी। फिर, लोग इससे जुड़ते गए। उनके बाद हर साल उनकी जयंती मनाई जाने लगी। यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष फसल कटने के बाद 18 दिसंबर को शुरू होकर 31 दिसंबर तक चलता है। इसमें विभिन्न धार्मिक गतिविधियां होती हैं। इसी के अंतर्गत श्रद्धा के साथ प्रतिदिन नृत्यों की प्रस्तुतियां दी जाती हैं। इनमें पंथी प्रमुख होता है।
पंथी नर्तक सलीम जांगडे़ ने बताया कि संत शिरोमणी बाबा घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। उन्होंने सतनामी पंथ की नीव रखी। फिर, लोग इससे जुड़ते गए। उनके बाद हर साल उनकी जयंती मनाई जाने लगी। यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष फसल कटने के बाद 18 दिसंबर को शुरू होकर 31 दिसंबर तक चलता है। इसमें विभिन्न धार्मिक गतिविधियां होती हैं। इसी के अंतर्गत श्रद्धा के साथ प्रतिदिन नृत्यों की प्रस्तुतियां दी जाती हैं। इनमें पंथी प्रमुख होता है।
उन्होंने बताया कि इस दौरान कई सतनामी पंथियों के गांवों में उत्सव का आयोजन होता है, जिसमें पंथी नृत्य दल पहुंच बाबा के लिए प्रस्तुति देता हैं। इस अवधि में प्रतिदिन संत शिरोमणी घासीदास बाबा के ’पालो’ यानी सफेद ध्वज चढ़ता है।
वाद्ययंत्र-
इस नृत्य में मांडल, झांझ, झूमका इत्यादि वाद्ययंत्रों पर नर्तक ताल मिलाते हैं। यह संगीत तीव्रगति का होने के बावजूद कर्णप्रिय होता है और जब इस पर नर्तक थिरकते हैं तो उनकी गति अचंभित कर देती है। जाहिर है, इतनी फास्ट बीट पर काफी देर तक बिना थके, बिना चूके स्टेप्स करना वाकई किसी शक्ति के संचार पर विश्वास करने को मजबूर करता है।
इस नृत्य में मांडल, झांझ, झूमका इत्यादि वाद्ययंत्रों पर नर्तक ताल मिलाते हैं। यह संगीत तीव्रगति का होने के बावजूद कर्णप्रिय होता है और जब इस पर नर्तक थिरकते हैं तो उनकी गति अचंभित कर देती है। जाहिर है, इतनी फास्ट बीट पर काफी देर तक बिना थके, बिना चूके स्टेप्स करना वाकई किसी शक्ति के संचार पर विश्वास करने को मजबूर करता है।
वेशभूषा-
पंथी नृत्य में नर्तक सतनामी कंठी, जनेऊ, धोती, घुंघरू, फुंदरा धारण कर जब मंच पर पहुंचते हैं तो खुद में अनूठी ऊर्जा का अनुभव करते हैं और बिना रुके नृत्य करतेे हैं। रिझाते हैं पिरामिड-
पंथी नृत्य के दौरान नर्तक कई तरह के पिरामिड बनाते हैं, जो नयनाभिराम तो होते ही हैं, रोमांचक भी होते हैं। कई बार तो दर्शकों के रोम खड़े हो जाते हैं, तो कई बार उन्हें दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर देते हैं।
पंथी नृत्य में नर्तक सतनामी कंठी, जनेऊ, धोती, घुंघरू, फुंदरा धारण कर जब मंच पर पहुंचते हैं तो खुद में अनूठी ऊर्जा का अनुभव करते हैं और बिना रुके नृत्य करतेे हैं। रिझाते हैं पिरामिड-
पंथी नृत्य के दौरान नर्तक कई तरह के पिरामिड बनाते हैं, जो नयनाभिराम तो होते ही हैं, रोमांचक भी होते हैं। कई बार तो दर्शकों के रोम खड़े हो जाते हैं, तो कई बार उन्हें दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर देते हैं।