अस्पताल में लगे कचरे के ढेर व गंदगी इसका जीता जागता उदाहरण है। कभी रेजिडेंट्स तो कभी कर्मचारियों की हड़ताल के चलते अस्पताल की व्यवस्थाएं आए दिन पटरी से उतर जाती हैं।
अस्पताल में मरीजों को विशेषज्ञ
चिकित्सकों से परामर्श तो मिलता है, लेकिन आउटडोर की कतार ही इतनी लंबी होती है कि अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। वार्डों की बात करें तो अस्पताल प्रशासन की अनदेखी के चलते वार्डों में भर्ती मरीजों को रोजाना परेशानियों से रूबरू होना पड़ता है।
Read: राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल का ही सच: यहां पर्ची पर लिखी 25% दवाइयां भी मुश्किल से मिल रही पेंशनर्स को हैरत की बात तो यह है कि सौदाबाजी का यह खेल कई दिनों से जारी है। रक्तदान जैसे पुण्य के कार्य में भी दलाल अपनी जेब भरने से बाज नहीं आ रहे हैं। अस्पतालों के वार्डों की बात करें तो यहां रात में मरीजों की सेहत का रखवाला ऊपर वाला होता है।
Read: राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल में बना इतिहास, 3 साल के लंबे इंतजार के बाद हुआ पहला लिवर ट्रांसप्लाट यहां रेजिडेंट्स डॉक्टर तो तैनात रहते हैं, लेकिन वो भी रात होते ही वार्डों से पार हो जाते हैं। इस पर हमारे चिकित्सा मंत्री का अस्पताल में इलाज में राजनीति को को लेकर दिया गया बयान इंसानियत को शर्मसार करने वाला है। एेसे में सरकारी अस्पतालों के जिम्मेदारों से तो उम्मीद करना ही बेमानी होगा।