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जयपुर

हिंदू-मुस्लिम एकता का अनूठा मिसाल है राजस्थान का ये मजार, तो इसलिए यहां हिंदू के हाथों चढ़ाई जाती है सबसे पहले चादर

कौमी एकता और भाईचारे का प्रतीक बन चुका मल्कसा पीर के इस मजार पर हर साल जिलकाद माह की ग्याहरवीं तारीख की शाम को उर्स मनाया जाता है।

जयपुरSep 06, 2017 / 07:07 pm

पुनीत कुमार

peer malakshah dargah
आज हम भले ही देश में गायों के नाम पर खुद को हिंदू और मुस्लमान के रुप में बांटते नजर आ रहे हैं, लेकिन यहां हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। देश की विसारत जितनी समृद्ध है, उतना ही अधिक यहां के रहने वाले लोगों के आपसी संबंध भी रहे हैं। राजस्थान के जालोर जिले में एक ऐसा पीर दरगाह है, जहां आज भी पहले एक हिंदू ही मजार पर चादर पोशी करता है। फिर उसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोग।
दरअसल, इसके पीछे की कहानी शायद आपको भी हैरान कर दे, लेकिन इस सच्ची घटना के बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि एक मुस्लिम शख्स ने गायों के लिए अपनी जान देकर लोगों और साम्प्रदायिक सौहार्द के अनूठा मिसाल कायम कर चुके हैं। घटना ऐसी है कि बरसों पहले एक मुस्लिम ने गायों और गुर्जरों को बचाने के लिए अपने प्राण दे दिए थे।
यही कारण है कि यहां हर साल उर्स के दौरान हजरत शहीद मल्कसा पीर दातार रेहमतुल्लाह अलैह की मजार की मजार पर सबसे पहले हिंदू समुदाय की ओर से चादर चढ़ाई जाती है। तो वहीं इस मजार को मल्कसा पीर के मजार के नाम से भी जाना है। जबकि मजार वाला इलाका पुराने गांव के नाम प्रसिद्ध है। सबसे खास बात कि यहां रेत के टीले पर बनी मजार पर मुस्लिम समुदाय से ज्यादा हिंदू समाज के लोग चादर पोशी करने और मन्नत मांगने आते हैं।
कौमी एकता और भाईचारे का प्रतीक बन चुका मल्कसा पीर के इस मजार पर हर साल जिलकाद माह की ग्याहरवीं तारीख की शाम को उर्स मनाया जाता है। जहां एक हिन्दू के हाथ से ही पहली चादर चढ़ाई जाती रही है। तो वहीं पुरानी जागीर से गांव के दरबार की परम्परा के अनुसार यहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दराज के गांवों से सैकड़ों लोग आते हैं।
बताया जाता है कि सालों पहले यहां लगभग 250 बीघा जमीन पर गुर्जर जाति के लोग रहा करते थे। फिर वहां गुर्जरों की गायों पर हमला हुआ तो वो यहां से पलायन कर गए। फिर से इस जगह पर गुर्जरों के बसाने की कोशिश की गई लेकिन वह नहीं मानें, जिसके बाद से आज भी यह इलाका उजाड़ पड़ा है। उसके बाद से ही ऐसा वरदान प्रचलित है कि यहां गुर्जर रहेंगे या उजड़ ही रहेगी। आज तक किसी ने एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया है।

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