यहां दवा लेने वाले रामस्वरूप ने बताया कि उन्हें यहां एक भी दवा नहीं दी गई और उन्हें एनओसी थमा दी गई। उन्होंने बताया कि वे और उनकी पत्नी सुबह से यहां बैठे रहे, लेकिन उन्हें कोई दवा नहीं मिली। इसी तरह निवाई से आए एक बुजुर्ग ने बताया कि दवा के लिए लाचार हो गए हैं, अब एनओसी लेकर बाजार से ही दवा खरीदनी पड़ेगी।
3 लाख से अधिक पेंशनर, कई को 100 तो कई को 80 प्रतिशत नहीं मिल रही दवाइयां दरअसल, प्रदेश के करीब 3 लाख से ज्यादा पेंशनर्स वित्त विभाग और कॉनफेड की मनमानी के कारण बुढ़ापे में दवा के लिए लाचारी के भंवर में अब भी फंसे हुए हैं। राजधानी जयपुर के सवाईमानसिंह अस्पताल परिसर सहित अन्य सहकारी दवा भंडारों पर दवाओं की अनुपलब्धता अब भी ऐसी ही है कि दवा पर्ची पर लिखी 80 प्रतिशत तक दवाइयां इन पेंशनर्स को नहीं मिल रही है। इसके कारण सुबह से शाम तक रोजाना सैंकड़ों पेंशनर्स या तो निराश लौट रहे हैं या उन्हें एनओसी लेकर निजी बाजार से महंगी कीमत पर दवाइयां लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
पैसा चुकाए तो दवाइयां आए दरअसल, कॉनफेड़ निजी दवा कंपनी के आपूर्तिकर्ताओं से इन दवाइयों की खरीद करता है, लेकिन इसके बदले नियमित तौर पर भुगतान ही नहीं कर पा रहा है। जिसके कारण अब तक करीब 300 करोड़ रुपया आपूर्तिकर्ता कंपनियों का बकाया हो चुका है, जिसके कारण कंपनियों ने लंबे समय समय से दवाओं की आपूर्ति ठप कर दी है।
पत्रिका लगातार उठा रहा मामला राजस्थान पत्रिका लाखों पेंशनर्स की इस पीड़ा को लगातार प्रमुखता से उठा रहा है। जिसमें पेंशनर्स को मिलने वाली दवाओं की अनुपलब्धता के चलते हो रही परेशानी को बताया गया है। इसके बाद राज्य सरकार के निर्देश पर कॉनफेड ने राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम आरजीएचएस में आने वाले पेंशनर्स के लिए दवाइयों की होम डिलीवरी की व्यवस्था शुरू करने की प्रक्रिया शुरू की है। जानकारी के मुताबिक अभी भी इसके दिवाली से पहले शुरू होने में आशंका है। कानफेड इसके लिए निजी सेवा प्रदाता को हायर करने जा रहा है।
मुख्य बिंदू कानफेड दवाइयों की खरीदकर जयपुर शहर की 45 सहकारी समिति की दुकानों के जरिये पेंशनर्स को दवा उपलब्ध कराता है 60 से 80 वर्ष आयु के पेंशनर पूर्व निर्धारित सहकारी समिति की दुकानों के सामने सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक दवा की दुकान में अपना नंबर आने का इंतजार करते हैं और अंत में उन्हें पता चलता है कि डॉक्टर की ओर से निर्धारित 10 में से सिर्फ 2 ही दवाइयां उपलब्ध हैं
गैर उपलब्ध दवाइयों के लिए पेंशनरों को सहकारी स्टोर की दुकानों से एनएसी जारी की जाती है, बदले में इन्हें एनएसी दे दी जाती है और इन्हें निजी दवा बाजार से ही दवाइयां खरीदनी पड़ती है
जानकारों के मुताबिक एनएसी जारी करना भी सरकार पर वित्तीय बोझ है, इससे सरकार पर करीब 35 प्रतिशत अधिक वित्तीय भार पड़ने का अनुमान है कई बार पेंशनर एनएसी मिलने के बावजूद पर्याप्त पैसे उपलब्ध नहीं होने के कारण तत्काल महंगी दवाइयां नहीं खरीद पाते और गंभीर बीमारी किडनी, कैंसर रोगी मुख्यतया उचित इलाज से वंचित रह जाते हैं