हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों के जन्म को लेकर परिवार के लोग उन्हें बोझ ही समझते हैं। लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित पिपलांत्री गांव समाज की इस रुढ़ीवादी और छोटी से काफी आगे निकल चुका है। इस गांव में पैदा होने वाली लड़कियों को बोझ नहीं बल्कि उन्हें सौभाग्य के रुप में समझा जाता है, और यही कारण है कि डेनमार्क की सरकार ने इस गांव को अपने स्कूली सिलेबस में शामिल किया। जिसके कारण ना केवल इस गांव को पहचान मिली है, बल्कि राजस्थान के साथ-साथ देश का भी मान बढ़ाया है।
देश की सरकारें भले ही बेटियों को उनका हक और उन्हें समाज में समाज दर्जा दिलाने के लिए आए दिन नई-नई घोषनाएं करती हैं, लेकिन पिपलांत्री जैसे छोटे से गांव में अगर किसी भी घर में बेटी का जन्म होता है, तो उसका जश्न पूरा गांव मनाता है। बेटियों के जन्म को लेकर गांव इतना उत्साहित और खुश होता है कि जिसके आंगन में बेटी का जन्म होता है, वहां के लोग इस खास मौके पर 111 पौधे लगाने का साथ-साथ उनकी देख-रेख का संकल्प भी लेते हैं। जो कि अपने आप आज के समाज को देखते हुए बड़ी बात है।
आपको बता दें कि डेनमार्क के स्कूली सिलेबस में इस गांव को शामिल किए जाने के बाद वहां के प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अब इस गांव की कहानी पढ़ाई जाती है। साल 2014 में डेनमार्क से मास मीडिया यूनिवर्सिटी की दो छात्राएं यहां पढ़ने आई थी, तब उन्होंने बताया कि डेनमार्क सरकार ने तमाम देशों के 110 प्रोजेक्ट्स में से पिपलांत्री गांव को टॉप-10 में शामिल किया है। तो वहीं इस पिपलांत्री गांव में बेटियों के जन्म को उत्सव की तरह मनाने के पीछे भी एक खास वजह है।
यहां के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल की बेटी के कम उम्र में मौत होने के बाद उन्हें इस बात का इनता दुख हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी की याद में पूरे गांव के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि जब भी कभी गांव के किसी भी घर में लड़की पैदा होगी तो पूरा गांव जश्न मनाने के साथ 111 पौधे भी लगाएगा। और इस तरह उसके बाद से इस गांव में यह सिलसिला चल पड़ा और आज भी जारी है।