प्रधानमंत्री ने अपने उद्भोधन में कहा, ‘’मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के लोकार्पण का अवसर दिया था। आज जैनाचार्य विजय वल्लभ जी की ‘स्टेच्यू ऑफ पीस’ के अनावरण का सौभाग्य भी मुझे मिल रहा है।‘’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज 21वीं सदी में मैं आचार्यों, संतों से एक आग्रह करना चाहता हूं कि जिस प्रकार आजादी के आंदोलन की पीठिका भक्ति आंदोलन से शुरु हुई। वैसे ही आत्मनिर्भर भारत की पीठिका तैयार करने का काम संतों, आचार्यों, महंतों का है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आचार्य विजय वल्लभ जी का संदेश यही था कि महिलाओं को समाज और शिक्षा में बराबरी का दर्जा मिले। आज देश मे इस दिशा में बहुत सारे प्रयास हो रहे हैं। तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ देश ने कानून बनाया है। देश की बेटियों को सेनाओं में अपना शौर्य दिखाने के लिए ज्यादा विकल्प मिल रहे हैं।‘
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज देश आचार्य विजय वल्लभ जी के उन्हीं मानवीय मूल्यों को मजबूत कर रहा है, जिनके लिए उन्होंने खुद को समर्पित किया। कोरोना महामारी का कठिन समय हमारे सेवा भाव और एकजुटता के लिए कसौटी की तरह था। मुझे संतोष है कि देश इस कसौटी पर खरा उतर है।‘
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इतिहास देखें तो महसूस होगा कि जब भी भारत को आंतरिक प्रकाश की जरूरत हुई है, संत परंपरा से कोई न कोई सूर्य उदय हुआ है। कोई न कोई बड़ा संत हर कालखंड में हमारे देश में रहा है, जिसने उस कालखंड को देखते हुए समाज को दिशा दी है। आचार्य विजय वल्लभ जी ऐसे ही संत थे।‘
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आचार्य जी के शिक्षण संस्थान आज एक उपवन की तरह हैं, सौ सालों से अधिक की इस यात्रा में कितने ही प्रतिभाशाली युवा इन संस्थानों से निकले हैं। कितने ही उद्योगपतियों, न्यायाधीशों, डॉक्टर्स, और इंजीनियर्स ने इन संस्थानों से निकलकर देश के लिए अभूतपूर्व योगदान किया है।
अपने जीवन में सुरीश्वर जी महाराज ने 1870 से 1954 तक भगवान महावीर के संदेश का नि:स्वार्थ और समपर्ण भाव से प्रचार प्रसार किया था। सुरीश्वर जी महाराज का कहना था कि भगवान महावीर के बताए अहिंसा की राह पर चलकर ही विश्व शांति को बढ़ावा देना संभव है। इसलिए सभी को हिंसारहित समाज के निर्माण में योगदान देना चाहिए।