हिमालय की टूट गई है बाड़
हट गया है पर्दा उसके चेहरे से
अब कोसों दूर जाता है वह उन तलक
जो बीता रहे हैं
कसौटी पर कसे जा रहे आज को,
कल के इंतजार में। हवा की खुल रही है बंदिशें
आंखें अब देखती हैं दूर तक
सुस्ता रही गाडिय़ां गैरेज में
ध्वनि के साथ उड़ गया धुआं
शांत चित सड़कें..
नहीं बहा जो लहू किसी का इन दिनों.!
हट गया है पर्दा उसके चेहरे से
अब कोसों दूर जाता है वह उन तलक
जो बीता रहे हैं
कसौटी पर कसे जा रहे आज को,
कल के इंतजार में। हवा की खुल रही है बंदिशें
आंखें अब देखती हैं दूर तक
सुस्ता रही गाडिय़ां गैरेज में
ध्वनि के साथ उड़ गया धुआं
शांत चित सड़कें..
नहीं बहा जो लहू किसी का इन दिनों.!
चहक रही हैं
बेटियां घर में
चिडिय़ा नभ में
अभयदान के साथ..
पंछियों के संवर रहे हैं दिन.! बीवियां खुश हैं
मांओं को भी तसल्ली है
कि उनके आंगन हो गए हैं नेह भरे
कहानियां रिवीजन कर रहे हैं दादा-दादी
बच्चों के सपनों में लौट रही हैं परियां
बेटियां घर में
चिडिय़ा नभ में
अभयदान के साथ..
पंछियों के संवर रहे हैं दिन.! बीवियां खुश हैं
मांओं को भी तसल्ली है
कि उनके आंगन हो गए हैं नेह भरे
कहानियां रिवीजन कर रहे हैं दादा-दादी
बच्चों के सपनों में लौट रही हैं परियां
किसी को नहीं है शिकायत
अब समय की कमी को लेकर
तेरा-मेरा, कम-ज्यादा
जैसे शब्द लिखे पन्ने
फट गए हैं शब्द कोष से.! हां..धरती के प्रसव काल में
कुछ कष्ट तो लाजमी है
घर की फिक्र से इतर
लड़ रहे हैं कई योद्धा..
और घरों में बैठे लोग भी समझा रहे हैं
संतोष की परिभाषा
सुना है बढ रहा है आदमी का धैर्य भी
इन दिनों!
अब समय की कमी को लेकर
तेरा-मेरा, कम-ज्यादा
जैसे शब्द लिखे पन्ने
फट गए हैं शब्द कोष से.! हां..धरती के प्रसव काल में
कुछ कष्ट तो लाजमी है
घर की फिक्र से इतर
लड़ रहे हैं कई योद्धा..
और घरों में बैठे लोग भी समझा रहे हैं
संतोष की परिभाषा
सुना है बढ रहा है आदमी का धैर्य भी
इन दिनों!
(*सप्तऋषि मंडल की तरह हिरनी और कीर्ति तारा समूह के नाम हैं।) कवि अध्यापन से जुड़े हैं