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जयपुर

कविता-सूरज से पी है मैंने आग

Hindi Poem

जयपुरOct 25, 2021 / 12:54 pm

Chand Sheikh

कविता-सूरज से पी है मैंने आग

कविता-सूरज से पी है मैंने आग

डॉ .सुनीता जाजोदिया

सूरज से पी है मैंने आग
पूरी करनी है रोज अपनों की आस
मिले न सहारा अपनों का चाहे हर बार
निकले न फिर भी कभी कोई आह
सूरज से पी है मैंने साहस की आग।
सूरज से ली है मैंने रोशनी
मारकर जमीर रोज है जीना
सितम अपनों के हजार हैं सहना
सीकर अधर जिन्हें चुपचाप है पीना
सूरज से जलाई है मैंने उम्मीद की आग।

सूरज से सीखा है मैंने नियम
बदलते रहते हैं मौसम हरदम
छोड़ मैदान नहीं है पर भागना
कर्म पथ पर डटे है रहना
सूरज से सुलगाई है मैंने जीने की आग।
सूरज से बीनी है मैंने किरणें
रिश्तों की तार-तार चादर पार जो चमकती
लहू लुहान हाथों से सीती जिसे मैं बारंबार
कांटों भरी रिश्तों की राहों में बढऩे आगे लगातार
सूरज से वरदान में पाई है मैंने जीतने की आग।
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