गत फसल पर यह 32.00 लाख टन ही थी। इस बारे में एसईए रेपसीडमस्टर्ड प्रमोशन काउन्सिल के चेयमैन विजय डाटा ने बताया कि देश में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग की वजह से देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता को देखते हुए सरसों के 100 मॉडल फॉम्स कोटा और बूंदी जिले में शुरू किए गए। जहां किसानों को खाद बीज एवं तकनीकी जानकारी के रूप में सहायता प्रदान की गई। वहीं नैनवा में एक किसानों को तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और विस्तार सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से बूंदी जिलों के नैनवा में फील्ड ही किसानों को समय-समय पर मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।
संस्थान के कार्यकारी निदेशक डी.वी. मेहता ने बताया कि एसोसिएशन राष्ट्रीय स्तर पर तेल-तिलहन उद्योग की शीर्ष संस्था है तथा किसानों औरं सरकार को समय-समय पर राय प्रदान करती है। उन्होंने फसल उत्पादन के आंकड़े पेश करते हुए बताया कि गत वर्ष जहां राजस्थान में 32.00 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ वहीं इस फसल में यह बढ़ कर 32.50 लाख टन होने का अनुमान है। देश के प्रमुख प्रदेशों में भी उत्पादन में 2.80 लाख टन अधिक उत्पादन का अनुमान है। एनसीएमएल के वाइस प्रेसिडेन्ट अरुण भल्ला ने बताया कि संस्थान सरसों उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में कार्यरत है।
महाप्रबन्धक डॉ. सुरेश मोटवानी ने कहा कि सॉलिडारिडाड की ओर से एसईए के साथ मिलकर किए गए संयुक्त प्रयासों से उत्पादन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ बेहतर बुनियादी सुविधाओं और लाभकारी बाजारों तक पहुंच के लिए किसानों को अत्याधुनिक तकनीकों और कृषि सम्बन्धित प्रथाओं तक पहुंच मिल सकी है। एसएई के ऑयल सीड डेवलपमेंट काउन्सिल के चेयरमैन हरेश व्यास ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।