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जयपुर

पशुओं को संक्रमण से बचाए

पशुओं में पिछले कुछ वर्षों से ढेलेदार त्वचा रोग (लम्पी स्किन डिजीज) फैलने लगा है। इस रोग की जद में आने पर दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन प्रभावित होता है। इससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान भी होता है।

जयपुरMay 24, 2022 / 03:37 pm

Shrawan Yadav

पशुओं को संक्रमण से बचाए

पशुओं को संक्रमण से बचाए

पशुओं का यह रोग पहले अफ्रीकी देशों तक ही सीमित था लेकिन महाराष्ट्र, झारखण्ड, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, तेलगांना, प. बंगाल और असम में यह तेजी से फैल रहा है। राजस्थान के जैसलमेर जिले में इस रोग के लक्षण गौवंश में मिले हैं। रोगग्रसित पशु से सैंपल लेकर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार भिजवाए थे जहां रोग की पुष्टि हो चुकी है। जैसलमेर में “क्विक रेस्पॉन्स टीम” का गठन किया जा चुका है।
गर्म व आद्र्र नमी में फैलता है यह रोग
एलएसडी रोग का प्रकोप गर्म एवं आद्र्र नमी वाले मौसम में अधिक होता है। आगामी मानसून के मौसम को देखते हुए इस रोग के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है। एक-दूसरे मवेशी के संपर्क में आने से फैलने वाली विषाणुजनित यह बीमारी देश में फैल सकती है।
ढेलेदार गांठ
इस रोग में पशुओं को बुखार और उनकी लिम्फ ग्रंथियों में सूजन आ जाती है। शरीर मे जकडऩ आ जाती है। पशु की त्वचा पर ढेलेदार गांठ बन जाती है। साथ ही संक्रमित पशु के नाक एवं आंख से स्त्राव निकलने लगता है, निमोनिया जैसे लक्षण दिखाई देते है। पशुओं के श्वसन मार्ग और आहारनाल में घाव हो जाता है।
गाय व भैंस होते हंै सर्वाधिक प्रभावित
ढेलेदार त्वचा रोग एक विषाणु “लम्पी स्किन डिजीज वायरस” से होता है जो कि एक प्रकार का पॉक्स वायरस है। यह वायरस गाय एवं भैंस को सर्वाधिक प्रभावित करता है। इस रोग के संक्रमण का हस्तांतरण विषाणु के वाहक आथ्र्रोपोड जैसे मच्छर, मक्खी और जूं-चिचड होते हैं। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली मख्खियां और मच्छर जब स्वस्थ पशु के शरीर पर पहुंचते हैं तो संक्रमण उनके अंदर भी पंहुचा देते हैं।
गाय व भैंस होते हंै सर्वाधिक प्रभावित
ढेलेदार त्वचा रोग एक विषाणु “लम्पी स्किन डिजीज वायरस” से होता है जो कि एक प्रकार का पॉक्स वायरस है। यह वायरस गाय एवं भैंस को सर्वाधिक प्रभावित करता है। इस रोग के संक्रमण का हस्तांतरण विषाणु के वाहक आथ्र्रोपोड जैसे मच्छर, मक्खी और जूं-चिचड होते हैं। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली मख्खियां और मच्छर जब स्वस्थ पशु के शरीर पर पहुंचते हैं तो संक्रमण उनके अंदर भी पंहुचा देते हैं।
पशुओं को संक्रमित पशुओं से बचाएं। यदि पशु की त्वचा पर घाव हो रहा है तो नीम की पत्तियां गुनगुने पानी मे डाल कर उसके घोल से धुलाई कर नीम का तेल भी लगाते रहें, मक्खियां आदि न बैठने पाएं। पशु बाड़े में सुबह- शाम नीम या गूगल का धुंआ करें।

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