रागा बंधुओं की ‘अधूरी कहानी’, नजर आएगा RU
विवि की सत्य घटनाओं पर आधारित ‘अधूरी कहानी’पांच साल में आ रहा है सातवां उपन्यासअनाथालय में गुजारे 12 साल, फिर पांच साल में लिख डाले सात उपन्यास
रागा बंधुओं की ‘अधूरी कहानी’, नजर आएगा RU
जयपुर, 11 अप्रेल
अगर दिल में आगे बढऩे की चाह हो तो कोई भी अभाव, उपेक्षा, आर्थिक तंगी दीवार नहीं बन सकी। आगे बढऩे का यही हौंसला नजर आता है रागा बंधुओं में। इसी हौंसले के कारण पांच साल में उनका सांतवां उपन्यास पब्लिश होने वाला है। हम बात कर रहे हैं मूल रूप से भरतपुर निवासी और राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके रागा बंधुओं रूप और बसंत की, जिनके उपन्यास की चर्चा कैलाश सत्यार्थी और शशि थरूर भी कर चुके हैं। रूप और बसंत को अब रोइन और रिझ्झम बंधुओं के नाम से जाना जाता है।
संघर्ष करते हुए गुजरा बचपन
रागा बंधु की बचपन बेहद अकेलेपन में एक अनाथालय में गुजरा। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद दोनों समाज कल्याण विभाग के अनाथालय में रहे। मां सरकारी स्कूल में 1300 रुपए प्रति माह मानदेय पर मिड डे मील बनाती हैं। दोनों को लिखने का शौक बचपन से ही था। शुरुआत कविता लेखन से हुई जो धीरे धीरे कहानी लेखन में बदली और अब उपन्यास तक पहुंच गई। शुरुआत अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखकर की। अपनी कल्पनाओं को दोनों ने उड़ान दी और इन पांच सालों में छह उपन्यास लिख चुके हैं और सातवां पब्लिश होने की तैयारी में है।
‘अधूरी कहानी’ में नजर आएगी सच्ची घटनाएं
रागा बंधुओं के मुताबिक उनका नया उपन्यास ‘अधूरी कहानी’ जुलाई में प्रकाशित होने जा रहा है। यह उनका सातवां उपन्यास है जो राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर की सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं। जिसमें पाठकों को प्यार के साथ साथ होस्टल लाइफ भी देखने को मिलेगी। दोनों भाई राजस्थान विवि के तीन छात्रावासों में चार साल रह चुके हैं।
बेस्ट सेलर में शामिल है ‘पानी की दुनिया’
गौरतलब है कि इनका उपन्यास ‘पानी की दुनिया’ बेस्ट सेलर में शामिल हैं। रागा बंधु बताते हैं इस उपन्यास में दुनिया के जलमग्न के बाद के संसार की कल्पना की गई है। साथ ही बताया कि मानव की अनियंत्रित विकास की चाह ही उसे विनाश की ओर ले जाती है। यह असल में एक ऐसे असामान्य दौर की कहानी है, जिसकी सहज कल्पना नहीं की जा सकती है। जिसे इंसान की जरूरतों से बढकऱ उसकी कभी न खत्म होने वाली लालसाओं ने जन्म दिया है। यह उपन्यास आपको सोचने पर मजबूर करता है और बताने की कोशिश की करती हैं कि कुछ भूलें ऐसी होती हैं,जो कभी कभी सुधार का एक मौका भी नहीं देतीं। गत वर्ष 26 अगस्त को प्रकाशित इस उपन्यास की डिमांड इतनी है कि इसका दूसरा एडिशन भी निकाला जा रहा है। उनके एक अन्य उपन्यास ‘यूथ वॉयस ऑफ इंडिया’ को कैलाश सत्यार्थी और शशि थरूर भी प्रमोट कर चुके हैं।
फैंटेसी लिखना पसंद
इन दोनों भाईयों का उपन्यास ‘राइटमैन’ दो साल पहले मार्केट में आया था। इसके साथ ही ‘अहम’ और ‘पारिस’ भी मार्केट में आ चुके हैं। ‘अहम’ उनका पांचवां उपन्यास था। इससे पूर्व ‘मिख्ला’ और ‘पंडित दलित’ उनके अन्य उपन्यास हैं। ‘पारिस’ नारीवादपर आधारित उपन्यास है। ज्योग्रोफी में एमएम करने वाले दोनों भाईयों का मन साहित्य में था इसलिए लेखक बन गए और आज पूरा समय लेखन को दे रहे हैं। बेजोड़ कल्पनाएं करने के कारण उन्हें फैंटेसी का जादूगर कहा जाता है। उनकी कल्पनाएं एक नई दुनिया का चलचित्र सा पेश करती हैं। जिसमें विमर्श का समुचित स्थान होता है। 12 साल तक भरतपुर के अनाथालय में रहने वाले इन भाईयों का कहना है कि हमें सपने देखने चाहिए और शिद्दत से पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। उनका कहना है कि किताबों से जो भी रॉयल्टी मिलती है उसमें से एक भी पैसा वह खुद पर खर्च नहीं करेंगे, सारा पैसा वह अपने जैसे ही बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए काम में लेंगे।
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