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राजस्थान का रण: शिक्षा: घोषणा पत्र स्केन, पार्टियों ने किए कितने वादे, कितने हुए पूरे

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जयपुरSep 19, 2018 / 10:25 pm

Kamlesh Sharma

rajasthan ka ran
हीरेन जोशी/जयपुर। शिक्षा, विद्यार्थी, युवा और रोजगार। हर चुनाव में ये बड़े मुद्दे रहते आए हैं। इसीलिए हर चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपने घोषणा पत्रों में पूरी पैकेजिंग के साथ इन्हें स्थान देते आए हैं। इसके बावजूद स्थिति सुधरने की बजाय गिरती ही रही है।
कांग्रेस न तो अपनी सरकार के समय शिक्षा क्षेत्र में खास कीर्तिमान स्थापित कर पाई, न अब विपक्ष में रहते हुए सरकार पर सार्थक दबाव बना पाई। भाजपा की स्थिति तो और भी खराब नजर आ रही है। उसने तकनीकी पक्ष जाने बिना कुछ वादे तो ऐसे कर दिए, जिन्हें पूरा करना सम्भव ही नहीं था। ऐसे में कहा जा सकता है कि किसी भी दल की सरकार हो, शिक्षा क्षेत्र में थोथे वादे ही करती आई हैं।
विपक्ष: चर्चा ही करता रहा, दबाव नहीं बना पाया
शिक्षा के मुद्दों पर सदन से सड़क तक चर्चाओं में तो सरकार की खिंचाई की लेकिन इससे जुड़ी बजट घोषणाएं पूरी कराने के लिए खास दबाव नहीं बनाया। जबकि कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि पिछले 5 साल में शिक्षा क्षेत्र में ही सर्वाधिक नुकसान हुआ।
स्कूल: निजी स्कूलों की बेलगाम फीस
शिक्षा के क्षेत्र में राज्य का बहुत बड़ा मुद्दा और हर परिवार की सबसे बड़ी समस्या है निजी स्कूलों की बढ़ती फीस। इसके लिए अदालत के निर्देश पर कानून बनना था। पिछली सरकार ने राज्य फीस नियंत्रण कानून बनाया तो अभिभावकों में उम्मीद जागी। पैंतीस हजार से अधिक स्कूलों को दायरे में लाया गया। कमेटी ने दिन-रात एक कर 10 हजार से अधिक स्कूलों की फीस पर नकेल लगाई लेकिन स्कूल नहीं माने। फिर भाजपा सरकार नया फीस कानून लाई लेकिन निजी स्कूलों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। इस कानून का अभिभावकों को लाभ नहीं दिला पाई।
मायूसीभरा कदम: दो सरकारी विवि कर दिए बंद
घोषणापत्र से इतर राज्य के इतिहास में पहली बार 2 सरकारी विश्वविद्यालय बंद किए गए। पत्रकारिता और विधि विवि। इससे आमजन में सरकार के प्रति गलत संदेश भी गया।
राहतभरा कदम: राज्य अधीनस्थ बोर्ड बनाया
केंंद्र स्तर पर कर्मचारी चयन आयोग की तर्ज पर राज्य अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड बनाया गया। इससे आरपीएससी पर भार घटा, विभागीय स्तर पर होने वाली परीक्षाओं में भ्रष्टाचार के आरोपों से बचा गया।
भाजपा
01. 5 साल में 15 लाख रोजगार का सृजन करेंगे।
02. शिक्षक पात्रता परीक्षा-टेट की समीक्षा कर इसकी बाधाएं दूर करेंगे। सुराज यात्रा में लगातार कहा गया, टेट समाप्त होगी।

03. विद्यार्थी मित्र, शिक्षाकर्मी, शिक्षा मित्र, संविदा शिक्षक, अतिथि शिक्षक, अंशकालीन शिक्षक, प्रबोधक आदि प्रकार से कार्यरत शिक्षकों की समस्याएं दूर करेंगे।
04. महिला विवि, पर्यटन विवि, शिक्षक प्रशिक्षण विवि की स्थापना करेंगे।

05. शिक्षक पदों का अनुमान लगाकर चयन प्रक्रिया के जरिए नियमित भर्ती की नियुक्तियां देंगे।

कांग्रेस
01. संभाग स्तर पर एजुकेशन हब, जिला स्तर पर डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन जोन गठित करेंगे।
02. पैराटीचर्स, विद्यार्थी मित्र, उर्दू पैराटीचर्स, लोकजुंबिश कर्मियों, शिक्षा कर्मियों, संविदा कर्मियों एवं स्ववित्तपोषित योजना में कार्यरत व्याख्याताओं के रोजगार की समस्या दूर करेंगे।

03. विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों को प्रदेश में चेप्टर खोलने के लिए आमंत्रित करेंगे।
04. सभी राजकीय स्कूल व आंगनबाड़ी में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करेंगे, टॉयलेट्स बनवाएंगे।

05. विदेशी भाषा संस्थान खोलेंगे।


भाजपा: घोषणा कर दी, जिसे पूरी करना सम्भव न हुआ, शब्दों की बाजीगरी
भाजपा के सुराज संकल्प के साथ चुनावी रैलियों में प्रशिक्षित बेरोजगार विद्यार्थियों को लुभाने के लिए जो घोषणा सबसे ज्यादा बार की गई वह थी, शिक्षक पात्रता परीक्षा टेट की समाप्ति। तकनीकी पक्ष जाने बिना की गई घोषणा का ही असर रहा कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के कायदे और शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत इसे समाप्त नहीं किया जा सका।
वादा पूरा करने के दबाव में केवल टेट का नाम राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा (रीट) किया गया। वहीं, सर्वाधिक चर्चित घोषणा 15 लाख नौकरियों की थी। सुराज यात्रा में 15 लाख सरकारी नौकरियां देने का दावा किया गया। घोषणापत्र बना तो शब्दों की बाजीगरी के साथ यह ’15 लाख रोजगार सृजन’ में बदल दिया गया।
हकीकत यह है कि सरकार आज तक नहीं बता पाई कि 15 लाख रोजगार किसे दिए गए। सरकारी नौकरी के नाम पर नियमित भर्ती का वादा धरा रह गया। चुनावी साल आते-आते भर्तियां निकाली गईं, जो कानूनी पेचीदगियों के बीच मुश्किलें झेल रही हैं। अधीनस्थ बोर्ड बनाने का वादा पूरा हुआ तो आरपीएससी का स्तर और कमजोर हो गया। सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग में सुधार दिखे मगर विवादों से बच नहीं पाए।
मॉडल स्कूल बने, पदोन्नति के बाद पदस्थापन, नई भर्ती के बाद पदस्थापन के मामले में पहली बार पारदर्शिता नजर आई। स्कूल शिक्षा का पाठ्यक्रम बदलकर सरकार ने वैचारिक प्रतिबद्धता दिखाई लेकिन इसे लेकर पक्ष-विपक्ष में राष्ट्रस्तर पर बहस हुई। हालांकि भर्ती निकाली गई लेकिन विद्यार्थी मित्र व अन्य समान सेवाओं की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया।

शिक्षा की गुणवत्ता सुधरी है। इसी का असर है कि परिणाम में 22 प्रतिशत सुधार हुआ। करीब 3300 करोड़ रुपए से कक्षाकक्षों का निर्माण हो चुका है, इस साल 2००० करोड़ से कक्ष बनाए जा रहे हैं। स्कूलों में बच्चों को दूध पिलाने का बड़ा काम शुरू किया गया। एक लाख से अधिक शिक्षकों को पदोन्नत किया गया। पाठ्यक्रम की विसंगतियां दूर कर नया पाठ्यक्रम लाए। बम्पर भर्तियां न केवल निकाली गईं, बल्कि पूरी की गईं।
वासुदेव देवनानी, शिक्षा राज्य मंत्री (2013 से)
शिक्षा के क्षेत्र में सरकार ने लुभावने वादे कर बेरोजगारों और विद्यार्थियों के साथ छल किया है। यही कारण है कि बेरोजगार सड़कों पर उतर रहे हैं। सरकार ने स्कूल खोलने की बजाय बंद करने का काम किया। किसी भी मायने में इन्होंने घोषणापत्र की पवित्रता का ध्यान नहीं रखा। पन्द्रह लाख नौकरियां देने की बजाय 26 हजार विद्यार्थी मित्र हटा दिए।
बृजकिशोर शर्मा, पूर्व शिक्षामंत्री, (2008 से 2013)

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