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जयपुर

2013 से अभियोजन स्वीकृति के 279 केस पेंडिंग, आखिर समय पर कार्रवाई क्यों नहीं होती-कटारिया

शून्यकाल के दौरान विधानसभा में एसीबी की ओर से पकड़े गए अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का मामला उठा। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि एसीबी ने जिस प्रकार भ्रष्ट लोगों पर शिकंजा कसा है, यह राजस्थान के लिए सौभाग्य की बात है। मगर दुख इस बात का है कि इतने प्रयत्नों के बाद भी इन अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती।

जयपुरFeb 12, 2021 / 01:23 pm

Umesh Sharma

2013 से अभियोजन स्वीकृति के 279 केस पेंडिंग, आखिर समय पर कार्रवाई क्यों नहीं होती-कटारिया

2013 से अभियोजन स्वीकृति के 279 केस पेंडिंग, आखिर समय पर कार्रवाई क्यों नहीं होती-कटारिया

जयपुर।

शून्यकाल के दौरान विधानसभा में एसीबी की ओर से पकड़े गए अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का मामला उठा। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि एसीबी ने जिस प्रकार भ्रष्ट लोगों पर शिकंजा कसा है, यह राजस्थान के लिए सौभाग्य की बात है। मगर दुख इस बात का है कि इतने प्रयत्नों के बाद भी इन अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती। 2013 से अब तक 279 मामले पेंडिंग पड़े हैं। सरकारें आएंगी और जाएंगी, अगर इन दागी लोगों को सजा दिलाते हैं तो प्रदेश का भविष्य अच्छा रहेगा।
कटारिया ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में कलेक्टर जैसे लोग पकड़ में आ रहे हैं। हमारे एसपी और एसडीएम बंधी ले रहे हैं। प्रतिदिन एक केस एसीबी टीम ने ट्रैप किया है। आय से अधिक संपत्ति के केस बने हैं, इसके बाद भी कार्रवाई नहीं होने से गलत संदेश जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का डायरेक्शन है कि इस तरह के मामलों में तीन महीने में सरकार से इजाजत मिलनी चाहिए। आज भी आईएएस अधिकारी हैं, उनकी 2017 से कार्रवाई की स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे मामलों में जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए। कटारिया ने आईएएस नीरज के. पवन, जिला रसद अधिकारी निर्मला मीणा के अलावा अमृतलाल जीनगर, आस मोहम्मद, नरेंद्र कुमार थौरी, दुर्गेश बिस्सा,चंद्रभान सिंह सहित कई अधिकारियों का नाम लेते कहा कि बरसों से इन लोगों के केस पेंडिंग पड़े हैं। जिस प्रकार से हमारी वर्किंग चल रही है वो इन अधिकारियों के हौंसले बुलंद कर रही है। इसलिए सरकार इस तरह के मामले में जल्द से जल्द स्वीकृति दे ताकि दोषियो पर कार्रवाई हो सके।
जीरो टोलरेंस की भाषा बोलना आसान है

कटारिया ने कहा कि लंबे समय तक केस को पेंडिंग रखने के बाद विभाग असहमति लिखकर भेज देता है। अगर आपको असहमति देनी है तो तीन-चार महीने में भेज दो। इसे लटकाना नहीं चाहिए, इससे मनोबल टूटता है। जीरो टोलरेंस की भाषा बोलना आसान है, लेकिन पेंडेंसी को लटकाए रखना भ्रष्टाचार को बढ़ाने का षड्यंत्र है।

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