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जयपुर

इस बार राजस्थान नहीं गा सकेगा… पधारो म्हारो देस…

Rajasthan Diwas के मौके पर इस बार नहीं होंगे उत्सव, नहीं गूंजेगा kesariya balam … फिर भी lockdown में दिखाई दे रहे हैं इंसानियत के रंग…

जयपुरMar 29, 2020 / 12:05 pm

uma mishra

इस बार राजस्थान नहीं गा सकेगा... पधारो म्हारो देस...

इस बार राजस्थान नहीं गा सकेगा… पधारो म्हारो देस…

30 मार्च को राजस्थान स्थापना दिवस है। हर साल यह गौरव का दिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और फिजाओं में केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देस… की धुन घुल जाती है, लेकिन इस बार राजस्थान यह गीत नहीं गा पा रहा है। पधारो म्हारे देस हमारी अतुलनीय परंपरा रही है, लेकिन इस बार संकट ऐसा आन पड़ा है कि हम जहां हैं, वहीं ठहर गए हैं। हमें अतिथियों की फिक्र है और हमारे देस की भी।
लाखों लोगों से उनका रोजगार छीन गया है, उनकी फिक्र भी किसी भी तरह के उत्सव की इजाजत नहीं देती, क्योंकि राजस्थान सिर्फ किलों और इमारतों से नहीं बना है, राजस्थान बना है यहां के लोगों सेे, जो मौसम की मार झेलकर ऐसे रंग खिलाते हैं कि देश-दुनिया के लोग राजस्थान को देखने चले आते हैं। इस बार भी राजस्थान का एक खूबसूरत रंग दुनिया देख रही है, लोग अपने-अपने तरीकों से मुसीबत में फंसे लोगों की मदद कर रहे हैं, मदद का यह रंग, इंसानियत का यह रंग सबसे खूबसूरत है।

इस मुश्किल समय में क्या कहते हैं हमारे लेखक जानिए…

Premchand Gandhi ने कहा, मानव जाति को बचाने का वक्त है यह
लेखक प्रेमचंद गांधी कहते हैं, कोरोना जैसी महामारी ने जिस तरह से दुनियाभर को आक्रांत कर रखा है और एक अदृश्य मौत का जो साया मनुष्यता के ऊपर चंदोवे की तरह फैला दिया है, उससे जीवन-जगत सब जैसे स्थिर हो गया है।
हम यानी इस धरती पर मनुष्य रहेंगे तो उत्सव-समारोह सब बड़ी धूमधाम से होते रहेंगे, फिलहाल इस वैश्विक संकट के काल में ख़ुद को और अपने परिजनों के साथ तमाम मानव-जाति को बचाने की भयावह चुनौती हमारे सामने है, जिसमें हम सबको अपना योगदान करना चाहिए।
जिस दिन कोराना के प्रकोप से हम सब बच जाएंगे तो फिर हमारे उत्सवों की रौनक और धूम अलग ही होगी, तब हम सब मिलकर बेखौफ मनाएंगे मानवीयता और संवेदनाओं का उत्सव, जिसमें गीत-संगीत-नृत्य-आह्लाद-हर्ष-उल्लास के साथ आनंद के अतिरेक में डूबे हुए निश्छल आंसुओं की जलधारा होगी।
Rajni Morwal ने कहा, रचनात्मकता ही बचाएगी हमें
राइटर रजनी मोरवाल कहती हैं, पधारो म्हारे देस कहने की परंपरा रखने वाले राजस्थान प्रदेश को कुछ दिनों के लिए कहना होगा क्वारेंटाइन होकर पधारो म्हारे देस। जैसा कि विदित है इस महामारी ने पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में जकड़ा है, अब वक्त आ गया है कि हम प्रकृति की महत्ता को समझें।
मानवजाति ने जिस तरह से हर प्रकृति प्रदत्त चीजों का अंधाधुंध दोहन किया है उसके परिणामस्वरूप आए दिन मनुष्य को पर्यावण असंतुलन के भयंकर कुपरिणाम भोगने पड़ रहे हैं। एक लेखक होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं इस कठिन समय में भी ऐसी कहानियां व लेख रचूं, जिसमें इस समय की मोहर हो।
साथ ही समाज के लिए एक संदेश भी निहित हो कि लॉकडाउन की स्थिति का सदुपयोग करते हुए हमें परिवार के साथ अपनी जड़ो की ओर लौटना चाहिए। भारतीय संस्कारों का मनन करना चाहिए ताकि इस महामारी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात हम एक बेहतर इंसान होकर ऊपर उठें।
Anupama Tiwari कहती हैं, संकट में फंसे परिवार की न्यूनतम जरूरतें करें पूरी
समाजसेवी और लेखक अनुपमा तिवाड़ी का कहना है कि यह वक्त हमारे असली इम्तिहान का वक्त है। सक्षम व्यक्ति को संकट से जूझ रहे कम से एक परिवार की न्यूनतम जरूरतों को पूरी करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। राजस्थान दिवस के मौके पर ऐसे ही संकल्प की जरूरत है हमें।
यह वक्त चला जाएगा, लेकिन हमें जाति, धर्म, नस्लभेद से ऊपर उठकर इंसानियत का पाठ पढ़ा जाएगा। राजस्थान में होली के रंग भी नहीं भीगे, लेकिन ये रंग हमारे दिलों में उतरे हैं, इसलिए ये रंग फिर खिलेंगे, फिर राजस्थानी बीनणी बोरला माथे पे पहन नाचेगी, फिर काका पचरंगी पाग पहने गाएंगे, फिर बालाओं के हाथ मेहंदी रचेगी, फिर रसोई से पूए-पापड़ी की खुशबू महकेगी, फिर ऊंट झालर-झूमर पहनकर सजेंगे और फिर कोई लंगा मांगणियार की जैसलमेर के मरुस्थल से मीठी हरहराती आवाज आएगी और हम सुन लेंगे… थोड़ा रुक कर ही सही, हम दोहराएंगे, पधारो म्हारो देस…।

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