जयपुर

सियासी त्रिकोण में उलझ गईं भाजपा की बाकी 38 सीटें, ये हैं वे पांच जिन पर पेंच

भाजपा में 38 सीटों पर ऐसा 36 का आंकड़ा आ फंसा है कि पार्टी को उसका तोड़ ढूंढने में पसीने छूट रहे हैं।

जयपुरNov 16, 2018 / 10:11 pm

Kamlesh Sharma

जयपुर। भाजपा में 38 सीटों पर ऐसा 36 का आंकड़ा आ फंसा है कि पार्टी को उसका तोड़ ढूंढने में पसीने छूट रहे हैं। यह 38 सीटें मुख्य तौर पर तीन शक्ति केंद्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस), केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा की पसंद-नापसंद में उलझी हुई हैं। इनमें पांच मंत्रियों की सीट भी शामिल हैं। परिवहन मंत्री यूनुस खान के टिकट को लेकर वसुंधरा और संघ आमने-सामने हैं।
जबकि श्रम एवं रोजगार मंत्री जसवंत यादव, सामान्य प्रशासन विभाग मंत्री हेमसिंह भड़ाना और खनन मंत्री सुरेंद्रपाल टीटी को लेकर केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा में सहमति नहीं बन पा रही। इसके साथ ही संसदीय सचिव ओमप्रकाश हुड़ला को लेकर वसुंधरा एवं राज्यसभा सदस्य किरोड़ीलाल मीना में ठन गई है।
केद्रीय नेतृत्व ने टिकट वितरण से पहले सभी 200 सीटों पर संभावित प्रत्याशियों का सर्वे कराया। इस सर्वे में काफी लोगों की स्थिति कमजोर आई। मंत्री यादव, भडाना और टीटी भी इनमें शामिल हैं। यादव को तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव में मौका भी दिया लेकिन मंत्री होने के बावजूद वह अपने गृह विधानसभा क्षेत्र बहरोड़ तक में नहीं जीत सके। भडाना को लेकर थानागाजी क्षेत्र में लंबे समय से विवाद चल रहे हैं। उनके बेटों को लेकर भी वह विवादों में उलझ चुके हैं। करणपुर क्षेत्र में टीटी की स्थिति भी नाजुक है।
ऐसे में केन्द्रीय नेतृत्व इनको टिकट देने के पक्ष में नहीं है। वसुंधरा हुड़ला और यूनुस के साथ भी खडी हैं लेकिन शेष तीनों के टिकट कटने पर उन्हें ज्यादा आपत्ति नहीं है। ऐसे में अब मध्यम मार्ग पर विचार चल रहा है। इसके अंतर्गत यादव के बेटे मोहित और टीटी की जगह एक बड़े नेता के रिश्तेदार के विकल्प पर विचार चल रहा है। साथ ही भड़ाना के स्थान पर नया चेहरा ढूंढा जा रहा है।
हुडला और किरोड़ी के बीच रस्साकसी
सांसद किरोड़ी लाल मीना ने 2008 में भाजपा से बगावत करके पार्टी छोड़कर अलग राह पकड़ ली। इसके बाद उन्होंने पिछले चुनाव में राष्ट्रीय जनता पार्टी (राजपा) के बैनर पर चुनाव लड़ा।
इससे पार्टी को मीना प्रभावित क्षेत्र में किरोड़ी फैक्टर का खतरा नजर आने लगा। ऐसी स्थिति से बचने के लिए भाजपा ने ओमप्रकाश हुड़ला को उनके विकल्प के तौर पर तैयार किया। अब किरोड़ी पार्टी में ना केवल लौट आए बल्कि राज्यसभा सदस्य भी बन गए।
नए राजनीतिक हालात के बाद किरोड़ी को अब पार्टी का पुराना विकल्प मंजूर नहीं है। हालांकि वसुंधरा इस बात पर तैयार नहीं हैं कि जो संकटकाल में पार्टी का विकल्प बना, उसकी अनदेखी की जाए।
इसके उलट किरोड़ी केंद्रीय चुनाव समिति से साफ कह चुके हैं कि यदि हुड़ला को चुनाव में उतारा गया तो वह राज्य में पार्टी के प्रचार में सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकेंगे। इस संबंध में वह दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से भी बात कर चुके हैं। साथ ही किरोड़ी भी चुनाव में उतरने की इच्छा रखते हैं। उनकी नजर भी उसी महुवा सीट पर है, जहां से हुड़ला पिछली बार निर्वाचित हुए।
हुडला और किरोड़ी के बीच की रस्साकसी की बड़ी वजह पिछले चुनाव की हार भी है। किरोड़ी ने हुड़ला के सामने अपनी पत्नी गोलमा देवी को चुनाव में उतारा था। हुड़ला ने गोलमा को हरा दिया था। हालांकि, गोलमा दूसरी सीट राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से जीतने में कामयाब हो गईं। वसुंधरा और किरोड़ी दोनों केंद्रीय नेतृत्व को अपनी पसंद-नापसंद बता चुके हैं।

किरोड़ी को हुडला पसंद नहीं और संघ खड़ा यूनुस के खिलाफ

केंद्रीय नेतृत्व के विस्तृत सर्वे में कुछ नेताओं की नकारात्मक रिपोर्ट सामने आई

ये हैं वे पांच जिन पर पेंच
डीडवाना से विधायक एवं परिवहन मंत्री यूनुस खान, करणपुर से विधायक खनन मंत्री सुरेंद्र पाल टीटी, थानागाजी से विधायक सामान्य प्रशासन विभाग मंत्री हेमसिंह भड़ाना, बहरोड़ से विधायक श्रम एवं रोजगार मंत्री जसवंत यादव, महुआ विधायक एवं संसदीय सचिव ओमप्रकाश हुड़ला।
यूनुस पर नहीं थमा कोहराम
यूनुस के टिकट को लेकर भी कोहराम अब तक नहीं थमा है। संघ उन्हें डीडवाना से तो मौका देने को तैयार नहीं हुआ है। हालांकि वसुंधरा अब भी यूनुस को वहीं से टिकट दिलाने में अड़ी हैं। अब दो विकल्प पर चर्चा है। पहला- यूनुस को फतेहपुर से उतारा जाए।
दूसरा- क्यों न यूनुस को टोंक में सचिन पायलट के खिलाफ उतार दिया जाए। इसमें परेशानी यह है कि टोंक में संघ का जमीनी आधार व्यापक है। ऐसे में सीट निकालने को लेकर दो तरफा दबाव बढ़ जाएगा। अब विकल्पों के पसोपेश में उलझा केंद्रीय नेतृत्व यहां भी बीच का रास्ता खोजने में जुटा है।

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