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जयपुर

‘बहुत सहा है अब और नहीं सहेंगे, कर्ज माफी लेकर रहेंगे‘… महाराष्ट्र ही नहीं राजस्थान में भी धरतीपुत्रों ने किए हैं कई बड़े आंदोलन

राजस्थानह में भी कर्जमाफी को लेकर धरतीपुत्र कई बार सडक़ों पर उतर आए और शासन का डटकर सामना किया…

जयपुरMar 12, 2018 / 02:17 pm

dinesh

Kisan Andolan
जयपुर। सम्पूर्ण कर्जमाफी और अन्य मांगों के साथ मुंबई की तरफ बढ़ रहा किसानों का काफिला सूबे की सरकार के लिए सरदर्द बन गया है। इस पैदल मार्च का नेतृत्व कर रहे संघटन ने 12 मार्च को किसानों के मुंबई पहुचने की आशंका जताई हैं। सभी किसान मुंबई पहुंचकर विधानसभा का घेराव करने वाले हैं। किसानों के इस आंदोलन का कई राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन किया है। इस आंदोलन का सबसे पहले समर्थन शिवसेना ने किया था और अब इसमें कांग्रेस और मनसे भी शामिल है।
किसानों की मांग है कि बीते साल सरकार ने कर्ज़ माफ़ी का जो वादा किया था उसे पूरी तरह से लागू किया जाए। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और गरीब किसानों के कर्ज़ माफ़ किए जाएं। इसके साथ ही किसान आदिवासी वनभूमि के आवंटन से जुड़ी समस्याओं के निपटारे की भी मांग कर रहे हैं ताकि आदिवासी किसानों को उनकी ज़मीनों का मालिकाना हक मिल सके। राजस्थानह में भी कर्जमाफी को लेकर किसानों ने कई बार आंदोलनों की राह अपनाई है। अपनी मांगों के लिए ये धरतीपुत्र कई बार सडक़ों पर उतर आए और शासन का डटकर सामना किया। जिसके चलते प्रदेश सरकार को काफी परेशानियों को सामना करना पड़ा है। आइए जानते हैं राजस्थान में कब-कब किसानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलनों का मोर्चा खोला है।
सीकर किसान आंदोलन 1979-80
इतिहासकार महावीर पुरोहित के अनुसार सीकर में 1979-80 में फसलों का सही मूल्य व मुआवजे की मांग को लेकर किसानों ने जेल भरो आंदोलन शुरू किया था। सीकर की धर्मशालाओं को अस्थायी जेल बनाया गया था। इस आंदोलन में एक किसान की मौत हुई थी।
शेखावाटी किसान आंदोलन (सीकर)
वर्ष 1925 में शेखावाटी किसान आंदोलन हुआ। इस आंदोलन का ज्यादा असर गांव कुंदन, कटराथल, खुड़ी व पलथाना में था। कुंदन, भठोठड़ा व खुड़ी पुलिस गोलीकांड में कई किसानों की मौत हुई थी। आंदोलन आजादी से एक साल पहले हीरालाल शास्त्री के जरिए समाप्त हुआ।
दूधवा-खारा किसान आंदोलन (चूरू)
दूधवा खारा गांव चूरू जिले में है। यहां पर वर्ष 1946-47 किसान आंदोलन हुआ। उस वक्त चूरू बीकानेर रियासत का हिस्सा हुआ करता था और किसानों पर जमीदारों के अत्यधिक अत्याचार होते थे। हनुमानसिंह आर्य, रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम आदि के नेतृत्व में यह आंदोलन किया गया था।
बेंगु किसान आंदोलन (चित्तौडगढ़़)
लाग बाग, बेगार प्रथा की चलते ही वर्ष 1921 में बेंगु किसान आंदोलन हुआ था। किसान नेता रामानारायण चौधरी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ। विजय सिंह पथिक भी इस आंदोलन से जुड़े थे। इसमें वर्ष 1923 में गांव गोविन्दुपरा में किसानों के सम्मेलन में सेना की गोलियों से रुपाजी व कृपाजी नामक दो किसानों की मौत हो गई थी। आखिर किसानों की जीत हुई हुई बेगार प्रथा समाप्त होने के साथ आंदोलन भी समाप्त हो गया था।
बिजौलिया किसान आंदोलन (भीलवाड़ा)
बिजौलिया में यह आंदोलन वर्ष 1897 से 1941 तक चला। आंदोलन की शुरुआत साधु सीतारामदास, नानकजी पटेल व ठाकरी पटेल के नेतृत्व में हुई थी। इसकी वजह लागबांग, बेगार, लाटा, कुंता व चंवरी कर, तलवार बंधाई कर आदि था। इस आंदोलन का जनक विजय सिंह पथिक को कहा जाता है। इनके अलावा माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज ने भी इस आंदोलन की बागड़ोर संभाली। माणिक्यलाल वर्मा व मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री टी.राघवाचार्य के बीच समझौता हुआ और किसानों की अधिकांश मांग मान ली गई।
मेव किसान आंदोलन (अलवर-भरतपुर)
लगान के विरोध में मोहम्मद अली के नेतृत्व में यह आंदोलन वर्ष 1931 में अलवर व भरतपुर में हुआ। यह क्षेत्र मेव बाहुल्य होने के कारण इसे मेवात कहते हैं।

सुअरपालन विरोधी आंदोलन (अलवर)
अलवर में दो किसान आंदोलन हुए। वर्ष 1921 में हुआ सुअरपालन विरोधी आंदोलन पहला था। इसकी वजह यह थी कि बाड़ों में पाले जाने वाले ***** द्वारा फसल को नष्ट करना था। उस वक्त सरकार की तरफ से सुअरों को मारने पर पाबंदी थी। किसानों ने विरोध में आंदोलन किया था। आखिर में सरकार ने सुअरों को मारने की इजाजत दी, तब आंदोलन समाप्त हुआ।
नीमूचणा किसान आंदोलन (अलवर)
अलवर के नीमूचणा में वर्ष 1923 से दूसरा किसान आंदोलन हुआ। अलवर के तत्कालीन महाराजा जयसिंह द्वारा लगान की दर बढ़ाना इस आंदोलन की वजह बना। गांवी नीमूचणा में किसानों की सभा पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थी, जिसमें सैकड़ों किसानों की मौत हुई थी।
बूंदी किसान आंदोलन (बूंदी)
अत्यधिक लगान, लाग बाग और बेगार प्रथा के विरोध में वर्ष 1926 में हुआ बूंदी किसान आंदोलन बरड़ किसान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। डाबी में नैनूराम शर्मा के नेतृत्व में हो रहे किसान सम्मेलन पर भी पुलिस की गोलियां चली, जिसमें नानक भील की मौत हो गई। यह 1943 में समाप्त हुआ।
2017 से भी भंयकर तैयारी थी किसानों की 2018 में
फरवरी 2018 में किसानों ने आंदोलन की 2017 से भी भंयकर तैयारी की थी। सीकर में किसान 15 दिन तक का राशन लेकर रामूकाबास तिराहे पर जाम लगाए बैठे गए। सीकर किसान आंदोलन की सम्पूर्ण कर्ज माफी और स्वामी नाथन आयोग की सिफारिशें लागू करवाने समेत 13 मांगे थी।
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