– मोहन सिंह मीणा, उम्र-90, बारहमील वाटिका मोड़
पहले नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ लोगों में भी उत्साह रहता था। सर्दियों में अलाव तापते लोग चर्चा करते थे कि अबकी बार कस्या चिह्न प ठप्पो लगाणौ छै। नेता और कार्यकर्ता गाना गाकर प्रचार करते। हमसे कहते ‘अबकी बार महांकी ओर झांकज्यो, म्हाने वोट दीज्यो’। बैलगाड़ी और ऊंटगाड़ी में लोग टोली में खुद ही वोट डालने जाते थे। अब वैसा माहौल नहीं रहा।
– रामप्रताप मीणा, उम्र-91, प्रतापनगर
अब तो म्हारो गांव शहर मं आग्यो, पेली यो नगरीय वाला गांव होया करे छो। पेल्यां वोट डालबा कई कोस पगां-पगां जावे छा। सारा नेता पैदल परचार करता दीखे छा। गांव का सारा लोग एक मत सूं वोट डालबा जावे छा। पहले पैदल घर-घर जाकर लोंगों से वोट के लिए अपील करते थे। अब नेता गाडिय़ों पर बैठकर दूर से प्रचार करते हैं। केवल कार्यकर्ता घर-घर पहुंचते हैं।
– ग्यारसी देवी, उम्र-90, थड़ी मार्केट, मानसरोवर
सब टोली बनाकर नाचते-गाते जाते थे। पहली बार गई तब बड़ी मिन्नतों के बाद सास ने गांव की औरतों के साथ मतदान करने भेजा। बैलगाड़ी पर गांव की औरतों के साथ सज-धजकर नाचती-गाती वोट डालने जाती थीं। यही नहीं, चुनावों पर खुद ही गीत बना लेती थीं। पहले अंगूठा लगाना आसान होता था। अब मशीन का बटन दबाने में डर लगता है, कहीं गलत बटन तो नहीं दब गया।
– भागवतप्रसाद, उम्र-90, विजयपथ, मानसरोवर
पहली बार चुनाव हुए तो लोगों में खूब जोश था। आजादी के बाद यह उनके लिए नया अनुभव था। जो लोग हिचकते, उन्हें कार्यकर्ता घर-घर जाकर वोट डलवाने ले जाते थे। पेम्फलेट, मोबाइल और टीवी जैसी चीजें नहीं होती थीं। नेता अपने कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर जाकर प्रचार करते थे। आजादी के बाद हुए चुनाव का माहौल तो बड़े उत्सव जैसा था।