वहीं दूसरी ओर नावां क्षेत्र में भी इस बीमारी का प्रकोप नजर आ रहा है। गुढासाल्ट, खाखड़ती, मोहनपुरा समेत नई नए क्षेत्र सामने आए है। वहीं दूसरी ओर प्रशासन की भी लापरवाही देखने को मिल रही है। ना तो यहां रेस्क्यू टीम के प्रोपर इंतजाम है और ना ही यहां रेस्क्यू कर रहे लोगों के पास कोई संसाधन है। ऐसे में साफ है कि प्रशासन मजह खाना पूर्ति कर रहा है।
वहीं दूसरी ओर दोनों विभाग पक्षियों के आंकड़े के साथ साथ पक्षियों की प्रजातियां भी छुपाने में लग रहे है। उनका दावा है कि, झील में एक भी फ्लेमिंगो पक्षी की मौत नहीं हुई। जबकि पत्रिका पड़ताल में तीन फ्लेमिंगो के शव सामने आए है। स्थानीय लोगों का कहना है कि, बरसों बीत गए पक्षियेां को आते हुए, कभी ऐसे हालात नजर नहीं आए। ऐसा पहली बार हुआ है। वहीं दूसरी भोपाल भेजे गए नमूने में विशेषज्ञों ने बर्ड फ्लू से भी साफ इंकार कर दिया है। अभी बरेली से रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। सोमवार को टीम बरेली और भोपाल से आई टीम ने झील के प्रभावित क्षेत्र में दौरा कर पक्षियों के रक्त के नमूने भी लिए।
बिना संसाधन पक्षी उठाने से कतरा रहे
-एक ओर जहां पशुपालन विभाग रेस्क्यू टीम और इसमें उपयोगी संसाधनों के पर्याप्त होने के दावा कर रहा है। वहीं दूसरी ओर मौके पर स्थिति उलटी नजर आ रही है। गुढा साल्ट में रेस्क्यू कर रहे कर्मचारी ने कहा कि, ना तो हमारे पास मास्क है और ना ही हाथों के ग्लब्स है। पक्षी को हाथ में उठाने में भी डर लग रहा है। इतना ही नहीं, रेस्क्यू के लिए यह कोई संसाधन नहीं होने से समीप के गांव में घरों से सीमेंट के खाली बोरियां मांगकर लाए।
एक रेस्क्यू सेंटर के हवाले हजारों पक्षी
-नावां क्षेत्र में शाकम्भरी माता मंदिर, मोहनपुरा, खाखड़ती रोड, गुढा साल्ट, जाब्दी नगर व नांवा झील के समीप बड़ी तादाद में ५-६ दिन से पक्षी मृत अवस्था में मिल रहे है। संख्या करीब १० हजार तक पहुंच गई। इसके बावजूद भी केवल नांवा स्थित पशु चिकित्सालय में रेस्क्यू सेंटर के नाम पर एक गड्ढा खोदकर मजह खाना पूर्ति कर ली। जबकि प्रभावित क्षेत्र १० से २० किलोमीटर तक दूर है। इस वजह से जीवित मिले पक्षियों को यहां लाने में भी लापरवाही हो रही है। ज्यादा संख्या एकत्र होने के चक्कर में इनकी देरी से मौत हो रही है।