प्यास बुझाने पर मिलता है सकून… दरअसल, उदयपुर स्थित पाडुना गांव की रहने वाली मीराबाई मीणा जो पेशे एक हैंडपंप बनाने का काम करती हैं। और प्यास से सूखे गलों को जल की भरपाई करने के काम में इनको काफी मजा आता है। ये यहां जिले के दूर-दराज के गांवों में जाकर बिगड़े हुए चापाकलों को बनाने का काम करती हैं। जिससे कि आसपास के गांवों में रहने वालों लोगों को पानी की समस्या से किसी तरह जूझना नहीं पड़े। इतना ही नहीं पानी पिलाना अब मीराबाई का एक खास मकसद बन गया है, जिसके लिए वो दूर-दराज के गांवों में जाने के लिए इन उबड़-खाबड़ पथरीली रास्तों का भी परवाह नहीं करती है। इन्हें तो सकून तब मिलता है, जब लोगों की प्यास बुझती है।
मीराबाई ने इसलिए चुना ये पेशा… आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली मीराबाई की कहानी किसी संघर्ष से कम नहीं। इनकी शादी के कुछ सालों बाद इनके पति का देहांत हो गया। तो वहीं इनके गांवों में उन दिनों पानी की समस्या इतनी बढ़ गई थी कि मीराबाई ने ठान लिया कि वो चापाकल मैकेनिक बनकर गांवों में प्यासे को पानी पिलाने का काम करेगी। इसके लिए उन्होंने इसकी ट्रेनिंग भी ली। इसके बाद बिगड़े चापाकलों को बनाना इनका एक खास मकसद बना गया। ये समय हर जगह हाथों में मरम्मत का समान लिए जाने को तैयार रहती है। चाहे वो दिन हो या रात का समय। लेकिन लोगों को प्यासा नहीं सकती है।
विकास से कोसो दूर है ये गांव… आपको बता दें कि पाडुना गांव उदयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर है। तो वहीं ये गांव प्रदेश के अविकसीत गांवों में से एक है। यहां की 90 फीसदी आबादी खेती कर जीवन यापन करती है तो वहीं गांव की अधिकतर आबादी बीस रूपए प्रतिदिन की कमाई से अपना घर चलाती है। यहां तक गांव में बिजली की भी काफी समस्या है। गांवों में आधारभूत ढांचे के नाम पर ना तो कोई स्कूल है, बेहतर अस्पताल। एक छोटा-सा मेडिकल डिस्पेंसरी है। जहां गांव के लोग अपना इलाज कराते हैं। तो वहीं मीराबाई मीणा अपने कंधों पर गांव-गांव पंप लिए घूमते रहती है, कि कोई पानी की समस्या से ना जूझे।
इसलिए बच्चे कहते हैं पंप वाली बुआ… इन सभी समस्याओं के अलावा यहां सबसे बड़ी समस्या पीने की पानी का है। और ऐसे कठिन हालात में भी मीरा यहां आसपास के 5 गांवों के लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराने के लिए चापाकल सुधारने के काम में जुटी रहती हैं। जो अपने आप में एक मिसाल है। यहां के लोग पानी के लिए तालाब और कुओं पर निर्भर हैं जबकि साफ पानी के लिए यहां जगह-जगह सरकारी हैंडपंप लगवाए गए हैं, जिसकी मरम्मत का जिम्मा मीराबाई के कंधों पर है। तो वहीं आसपास के गांवों में मीराबाई को बच्चे पंप वाली बुआ के नाम से भी जानते हैं।
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