इस तरह तैयार होंगे प्लांट
इन राखियों में देसी कपास, राई, राजगीरा, नाचणी, लाल हरी भाजी, लाजवंती, तुलसी, प्राजकता, चंदन, बिक्सा, खैर और बेल सहित विभिन्न प्लांट्स के सीड्स लगाए गए हैं, जिन्हें राखी में से निकालकर मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। वहीं इन्हें बनाने के लिए भी देसी सूत का इस्तेमाल किया जाता है। सीधे खेत से कपास लाकर महिलाएं कलरफुल राखियां तैयार करती हैं।
इन राखियों में देसी कपास, राई, राजगीरा, नाचणी, लाल हरी भाजी, लाजवंती, तुलसी, प्राजकता, चंदन, बिक्सा, खैर और बेल सहित विभिन्न प्लांट्स के सीड्स लगाए गए हैं, जिन्हें राखी में से निकालकर मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। वहीं इन्हें बनाने के लिए भी देसी सूत का इस्तेमाल किया जाता है। सीधे खेत से कपास लाकर महिलाएं कलरफुल राखियां तैयार करती हैं।
पारडसिंह गांव के युवाओं की पहल
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंह गांव के युवाओं की पहल से ये सीड राखियां तैयार की गई हैं। इनमें कुछ युवा खेतीबाड़ी से जुड़े हुए हैं, वहीं कुछ अपनी जॉब छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन युवाओं ने ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के तहत ये राखियां बनाई हैं। राखियों की कीमतें भी काफी रीजनेबल है। प्रोजेक्ट से जुड़ी श्वेता बताती हैं कि पारडसिंह में ज्यादातर किसान हाइब्रिड कपास की खेती करते हैं, जिनमें कैमिकल का ज्यादा यूज होता है और भूमि बंजर होती जा रही है। इसे देखते हुए गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर ऑर्गेनिक खेती को प्रमोट किया और इस खेती से ही आर्टिस्टिक चीजों को बनाने का आइडिया आया। पिछले तीन साल से हम इन राखियों पर काम रहे हैं। इन राखियों के जरिए आस-पास के पांच गांवों की 50 महिलाओं को रोजगार भी मिला है। ये महिलाएं घर पर ही बिना किसी मशीन के ये राखियां तैयार कर रही हैं।
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंह गांव के युवाओं की पहल से ये सीड राखियां तैयार की गई हैं। इनमें कुछ युवा खेतीबाड़ी से जुड़े हुए हैं, वहीं कुछ अपनी जॉब छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन युवाओं ने ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के तहत ये राखियां बनाई हैं। राखियों की कीमतें भी काफी रीजनेबल है। प्रोजेक्ट से जुड़ी श्वेता बताती हैं कि पारडसिंह में ज्यादातर किसान हाइब्रिड कपास की खेती करते हैं, जिनमें कैमिकल का ज्यादा यूज होता है और भूमि बंजर होती जा रही है। इसे देखते हुए गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर ऑर्गेनिक खेती को प्रमोट किया और इस खेती से ही आर्टिस्टिक चीजों को बनाने का आइडिया आया। पिछले तीन साल से हम इन राखियों पर काम रहे हैं। इन राखियों के जरिए आस-पास के पांच गांवों की 50 महिलाओं को रोजगार भी मिला है। ये महिलाएं घर पर ही बिना किसी मशीन के ये राखियां तैयार कर रही हैं।
जॉब छोड़कर जुड़ी
प्रोजेक्ट से जुड़ी नूतन बताती हैं कि मुझे ऑर्गेनिक खेती और महिलाओं को रोजगार से जोडऩा काफी अच्छा लगता है। इसके लिए मैं अपनी टीचिंग जॉब जोड़कर फुलटाइम इस काम में लग गई हूं। लोगों को हमारा काम बहुत पसंद आ रहा है। हर दिन राखियों की बिक्री हो रही है। जयपुर से भी इन राखियों की काफी डिमांड आ रही है। लोग सीड राखियों में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं, जिसके कारण राखियों का स्टॉक काफी तेजी से खत्म हो रहा है। इससे ग्रामीण महिलाओं को इनकम भी हो जाती है।
प्रोजेक्ट से जुड़ी नूतन बताती हैं कि मुझे ऑर्गेनिक खेती और महिलाओं को रोजगार से जोडऩा काफी अच्छा लगता है। इसके लिए मैं अपनी टीचिंग जॉब जोड़कर फुलटाइम इस काम में लग गई हूं। लोगों को हमारा काम बहुत पसंद आ रहा है। हर दिन राखियों की बिक्री हो रही है। जयपुर से भी इन राखियों की काफी डिमांड आ रही है। लोग सीड राखियों में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं, जिसके कारण राखियों का स्टॉक काफी तेजी से खत्म हो रहा है। इससे ग्रामीण महिलाओं को इनकम भी हो जाती है।
पर्यावरण के लिए तोहफा
राखी के त्योहार पर हर कोई यूनीक राखियों को पसंद करता है। एेसे में सीड्स से तैयार राखियां शहरवासियों को पसंद आ रही हैं। इन्हें ऑनलाइन खरीदने वाली ममता सैनी बताती हैं कि इन राखियों के जरिए आप अपने भाई को पौधे गिफ्ट कर सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहतरीन गिफ्ट है। सोशल वर्क से जुड़ी श्वेता त्रिपाठी कहती हैं कि ये राखियां महिलाओं को रोजगार का अवसर देती हैं। हैंडमेड होने के कारण इनमें मशीन का यूज नहीं होता है, एेसे में इनसे लघु उद्योगों को बढ़ावा मिला है।
राखी के त्योहार पर हर कोई यूनीक राखियों को पसंद करता है। एेसे में सीड्स से तैयार राखियां शहरवासियों को पसंद आ रही हैं। इन्हें ऑनलाइन खरीदने वाली ममता सैनी बताती हैं कि इन राखियों के जरिए आप अपने भाई को पौधे गिफ्ट कर सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहतरीन गिफ्ट है। सोशल वर्क से जुड़ी श्वेता त्रिपाठी कहती हैं कि ये राखियां महिलाओं को रोजगार का अवसर देती हैं। हैंडमेड होने के कारण इनमें मशीन का यूज नहीं होता है, एेसे में इनसे लघु उद्योगों को बढ़ावा मिला है।