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जयपुर

रामलला अयोध्या में विराजमान

यादगार 9/11 : रामलला विराजमान को विवादित 2.77 एकड़ भूमि का स्वामित्व
सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में अन्यत्र मिलेगी 5 एकड़ जमीन
निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज

जयपुरNov 10, 2019 / 02:09 am

Vijayendra

रामलला अयोध्या में विराजमान

रामलला अयोध्या में विराजमान

नई दिल्ली
सात दशक चली कानूनी लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद शनिवार को अयोध्या मामले पर बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया। सर्वोच्च अदालत की पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-1 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
निर्मोही अखाड़े और शिया वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए दी जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए।
1045 पन्नों के इस फैसले में मुख्य फैसला 926 पन्नों का है। एक जज ने अलग से 116 पेज में अपनी राय भी दर्ज कराई है। हालांकि, इन जज का नाम नहीं दिया गया है। इन्होंने अपने नोट में लिखा है कि तीन गुंबद वाली जगह ही राम का जन्मस्थान है और राम जन्मस्थान पर ही बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ। खचाखच भरे कोर्ट रूम नंबर 1 में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) रंजन गोगोई ने करीब 45 मिनट में फैसले के मुख्य बिंदुओं को पढ़ा। सीजेआइ गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे। संविधान पीठ ने मामले में 6 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी, जो १६ अक्टूबर तक चली।
टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता
सीजेआइ गोगोई ने फैसले में कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढऩे के सबूत नहीं हैं। उधर हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। केंद्र अयोध्या में अधिग्रहित जमीन में से 5 एकड़ दे या फिर यूपी सरकार अयोध्या शहर में कहीं और मुस्लिम पक्ष के लिए जमीन दे। उल्लेखनीय कि अयोध्या में केंद्र ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर रखा है।
हाईकोर्ट का फैसला तार्किक नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 तक नमाज पढ़ी गई थी। टाइटल सूट नंबर 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और 5 (रामलला विराजमान) में हमें संतुलन बनाना होगा। हाईकोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे, उसे दो हिस्सों में मानना होगा। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तार्किक नहीं था।

1856 से पहले भी पूजा करते थे हिंदू
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की थी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढऩे के सबूत नहीं हैं। आपको बता दें कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा था कि वहां लगातार नमाज पढ़ी जाती थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे।
खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी। एएसआइ ने इसे 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं। गौरतलब है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड लगातार कह रहा था कि एसआइ की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया
कोर्ट ने कहा कि एएसआइ साबित नहीं कर पाया कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी थी। हालांकि अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू पक्ष का दावा गलत साबित नहीं हुआ। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम के जन्म का सही स्थान मानते हैं। कोर्ट ने कहा कि रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी इस दावे की पुष्टि होती है।
फैसले में यह खास बिंदू भी
केंद्र सरकार अधिगृहित भूमि के बाकी बचे हिस्से के प्रबंधन और उसके विकास के लिए प्रावधान तय करने के लिए स्वतंत्र होगी।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की दी जानेवाली भूमि या तो अयोध्या एक्ट 1993 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहित भूमि से दी जाएगी या राज्य सरकार की ओर से अयोध्या मे किसी प्रमुख स्थान पर दी जाएगी।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे तीन महीने में संबंधित पक्षों को भूमि आवंटित करने की प्रक्रिया में आपस में सलाह-मशविरा करेंगे।
भूमि के आवंटन के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड मस्जिद निर्माण के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगा।
केंद्र सरकार ट्रस्ट का गठन करते समय निर्मोही अखाड़े को भी उचित प्रतिनिधित्व देगी।
गोपाल सिंह विशारद का पूजा करने का अधिकार सही माना।
कोर्ट ने कहा कि यह सही नहीं है कि वो धर्मशास्त्र पर विचार करे। संविधान का आधार धर्मनिरपेक्षता है।

भगवान राम को न्यायिक व्यक्ति माना
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रामजन्मभूमि न्यायिक व्यक्ति नहीं है, लेकिन कोर्ट ने भगवान राम को न्यायिक व्यक्ति माना। कोर्ट ने कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट सभी धर्मों के लोगों के हितों की रक्षा के लिए है।

एएसआइ के निष्कर्षों पर संदेह नहीं
कोर्ट ने कहा कि बाबर के शासनकाल में मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी। कोर्ट ने कहा कि एएसआइ के निष्कर्षों पर संदेह नहीं किया जा सकता है। एएसआइ के निष्कर्षों से यह साफ नहीं है कि हिंदू मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। भूमि पर स्वामित्व एएसआइ के निष्कर्षों के आधार पर नहीं हो सकता है बल्कि तय कानूनी प्रावधानों के मुताबिक होता है।
कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए तोड़ी मस्जिद
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में इस बात को नोट किया है कि 1992 में कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए मस्जिद तोड़ी गई थी। 1946 के फैजाबाद कोर्ट के आदेश को चुनौती देती शिया वक्फ बोर्ड की विशेष अनुमति याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। शिया वक्फ बोर्ड का दावा विवादित ढांचे पर था। निर्मोही अखाड़े ने जन्मभूमि के प्रबंधन का अधिकार मांगा था। कोर्ट ने उसका दावा भी खारिज कर दिया।

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