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जयपुर

दिल के एओरटा वाल्व में लीकेज, बिना सर्जरी के वॉल्व रिप्लेसमेंट किया

– देश का पहला केस, टावर तकनीक से ठीक की एओर्टिक रिगर्जिटेशन की गंभीर समस्या- मरीज को थी कई गंभीर बीमारियां, मुख्य दो नसों में जन्मजात छेद को भी किया ठीक

जयपुरMar 17, 2020 / 04:24 pm

Om Prakash Sharma

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जयपुर. दिल के एओरटा वाल्व में लीकेज (एओर्टिक रीगर्जिटेशन), खून की गंभीर बीमारी, क्रॉनिक किडनी डिजीज और अन्य दूसरी बीमारियों के साथ जी रहीं सीता देवी (परिवर्तित नाम) (59) ने जीने की आस छोड़ ही दी थी। देशभर के बड़े अस्पतालों में परामर्श लेने के बाद जब सभी जगहों से उन्हें कोई सफलता नहीं मिली तो टावर तकनीक (ट्रांस कैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट) उनके लिए वरदान साबित हुई। जयपुर के सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रवींद्र सिंह राव ने टावर तकनीक के जरिए वॉल्व रिप्लेसमेंट से ठीक कर दिया। साथ ही शरीर की दो मुख्य नसों में जन्मजात छेद की समस्या पीडीए (पेटेंट डक्ट्स आर्टरियोसिस) को एक ही बार में ठीक किया गया। चिकित्सक का दावा है देश में पहला केस है जब एओर्टिक रिगर्जिटेशन की समस्या को टावर तकनीक से ठीक किया है।
मरीज को थी कई समस्याएं –

सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रवींद्र सिंह राव ने बताया कि मरीज को चलने पर सांस फूलने, घबराहट की समस्या थी। उन्हें जेएलएन मार्ग स्थित एक हॉस्पिटल में ले जाया गया, जहां उनका इलाज किया गया। जांच में सामने आया कि उन्हें एओर्टिक रिगर्जिटेशन (एओरटा में लीकेज) की समस्या था। इस समस्या में ऑक्सीजन युक्त खून आगे बहने की बजाय वापस दिल की
तरफ चला जाता है जिससे ऑक्सीफाइड व अनऑक्सीफाइड खून आपस में मिल जाते हैं और दिल के चैंबर पर दबाव पडऩे लग जाता है। उन्हें खून की समस्या आइटीपी भी थी, जिसमें प्लेटलेट्स कम होने के कारण मरीज में इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है। इसके अलावा उन्हें क्रॉनिक किडनी डिजीज, हायपरटेंशन की समस्या भी थी जिसके कारण उनकी ओपन हार्ट सर्जरी करना संभव नहीं था।
टावर तकनीक से बदला वॉल्व-

सर्जरी के खतरों को देखते हुए मरीज को इंटरवेंशनल तकनीक से वॉल्व रिप्लेस किया गया जिसके लिए टावर तकनीक का इस्तेमाल किया गया। पूरी प्रक्रिया मरीज को बिना वेंटीलेटर और एनेस्थिसिया के ही की गई। डॉ. राव ने बताया कि जांघ की धमनी के रास्ते से कैथेटर की सहायता से एओर्टिक वॉल्व तक पहुंचा गया जहां बैलून एक्सपेंडल तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मरीज को नया वॉल्व लगाया गया। साथ ही एक अन्य डिवाइस की मदद से दो अन्य नसों के छेद को बंद किया गया। नए वॉल्व ने इंप्लांट होने के साथ ही काम करना शुरू कर दिया और मरीज की हाल में तेजी से सुधार आना शुरू हो गया। एक-दो दिन बाद ही मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिया गया और अब वह सामान्य जीवन जी पा रही है।

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