पिता के सपनों को परवाज दी रुकमीना ने
मैं जिस जगह से ताल्लुक रखती हूं, वहां आज भी बेटों की पढ़ाई के आगे बेटियों को अहमियत नहीं दी जाती, क्योंकि यह माना जाता है कि बेटे पढ़-लिखकर रोजगार करेंगे। बेटियां शादी करके चली जाएंगी। बेटियों को पढ़ाना -लिखाना तो दूर, उन्हें घर से बाहर भी नहीं निकाला जाता।
पिता के सपनों को परवाज दी रुकमीना ने
ज्योति शर्मा अलवर. मैं जिस जगह से ताल्लुक रखती हूं, वहां आज भी बेटों की पढ़ाई के आगे बेटियों को अहमियत नहीं दी जाती, क्योंकि यह माना जाता है कि बेटे पढ़-लिखकर रोजगार करेंगे। बेटियां शादी करके चली जाएंगी। बेटियों को पढ़ाना -लिखाना तो दूर, उन्हें घर से बाहर भी नहीं निकाला जाता। यह कहना है अलवर के किशनगढ़ बास के बीदरका गांव में रहने वाली रुकमीना का। रुकमीना गांव में स्नातक करने वाली पहली युवती हैं और अब खुद का ई-मित्र चलाती हैं। वे कहती हैं कि उनके लिए पढ़ाई कर रोजगार करने तक का सफर आसान नहीं रहा। उन्हें पढ़ाई करने के लिए अपने ही लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा। वे कहती हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर पाऊंगी, लेकिन पिता के साथ और उन्हीं के मजबूत इरादों की वजह से यह संभव हो पाया। रुकमीना के इस कदम के बाद अब गांव में लोगों की सोच का दायरा भी बढऩे लगा है। रुकमीना का कहना है कि वे सात भाई-बहन हैं और वे पांचवे नंबर पर हैं। उनकी बहनों की शादी हो चुकी है। घर के सभी सदस्य चाहते थे कि उनकी भी शादी हो जाए, लेकिन पिता असगर हुसैन का सपना था कि रुकमीना पढ़े और आगे बढ़े। इसके लिए पिता ने गांव, समाज और परिवार के विरोध का सामना भी किया। उनके मजबूत इरादों के आगे किसी की एक न चली। 12वीं के बाद उसने किशनगढ़ बास में कॉलेज में एडमिशन लिया और अपनी शिक्षा को पूरा किया। इसके बाद गांव में ई-मित्र चलाना शुरु कर दिया आज गांव की लड़कियां ईमित्र पर आती है और उनके काम भी करवाती है।