हर्षा कहती हैं कि उसके खून में ही कराटे है। वो बताती हैं कि एक समय ऐसा भी था जब उसके पास कराटे का कोर्स सीखने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। हर्षा के पिता कुश्ती खिलाड़ी थे, पिता को कुश्ती लड़ते देख हर्षा भी कराते की प्रैक्टिस करती थी, लेकिन परिवार की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वो कराटे सीखने के लिए क्लास जा सके। घर में ही टीवी देख-देख कर प्रैक्टिस करती रही और एक समय ऐसा आया कि वो कराटे चैपियन बन गई।
मेरी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी हर्षा हर लड़की के दिमाग में यह सोच डाल रही है कि मेरी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है। बहुत ही कठिन परिस्थितियों से गुजरी हर्षा आज उस समय खुश होती है जब लड़कियां अपनी सुरक्षा खुद करती है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के हाथों संत इश्वर फाउंडेशन राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित हो चुकी हर्षा अभी आईआईटी के बच्चों को सिखा रही है। वो बताती हैं कि शहर से ज्यादा गावों में लड़कियों को आत्मरक्षा की जरूरत है लेकिन हम गावों में ध्यान ही नहीं देते। इस कारण हर्षा ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में जाकर लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सिखा रही है।
चलती ट्रेन में देती है प्रशिक्षण महिलाएं छेडख़ानी और पर्स चोरी की घटनाओं का शिकार ट्रेन में ही ज्यादा होती है। इसलिए हर्षा ने प्रशासन के साथ मिलकर चलती ट्रेन में महिलाओं को आत्मरक्षा करना सिखाया। हर्षा ने 25 गरीब बच्चों को गोद लिया है और 30 मूकबधिर बच्चों को कराटे सिखाया है। छत्तीसगढ़ में बहुत कम पैरेंट्स अपनी बच्चियों को कराटे सिखाते थे लेकिन हर्षा ने पैरेंट्स की सोच ही बदल दी और अब राजधानी रायपुर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में लड़कियां आत्मरक्षा के गुर रही है। वो आत्मनिर्भर होने के साथ अपनी रक्षा खुद कर रही है।