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जयपुर

रीता ने चाकू से कैनवास पर जीवंत कर डाली प्रकृति

देश हो या विदेश जहां भी जाना होता है, कुदरत को अपने कैनवास पर उतार लेती हूं। फिर इसमें प्रकृति, फूल, पेड़ आदि कुछ भी हो सकता है। ये कहना है कि डॉ. रीता पांडे का जो नाइफ पेंटिंग करती हैं।

जयपुरDec 09, 2023 / 03:23 pm

Rakhi Hajela

रीता ने चाकू से कैनवास पर जीवंत कर डाली प्रकृति

रीता ने चाकू से कैनवास पर जीवंत कर डाली प्रकृति

देश हो या विदेश जहां भी जाना होता है, कुदरत को अपने कैनवास पर उतार लेती हूं। फिर इसमें प्रकृति, फूल, पेड़ आदि कुछ भी हो सकता है। ये कहना है कि डॉ. रीता पांडे का जो नाइफ पेंटिंग करती हैं। उनका कहना है कि पेंटिंग का शौक स्कूल के समय से ही था लेकिन कभी इसी से पहचान मिलेगी यह सोचा नहीं था। राजस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट करने के साथ ही कैनवास पर अपनी कल्पनाओं को साकार रूप देना शुरू कर दिया। पति और परिवार को पूरा सहयोग मिला जिसके चलते सबसे पहले जयपुर में ही अपनी प्रदर्शनी लगाई। वे देश के उन गिनेचुने कलाकारों में से हैं, जो नाइफ से पेंटिंग करती हैं। उनकी पेंटिंग की खास बात यह है कि वह थ्रीडी इफेक्ट देती हुई प्रतीत होती हैं। मानो आंखों के सामने प्रकृति का सजीव चित्रण किया गया हो। रीता का कहना है कि उनकी इच्छा इस तकनीक को आने वाली पीढ़ी को सिखाने की भी है। वे कहती हैं कि प्रदेश में महिला कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे, इसके बाद भी महिला कलाकार खुद आगे आ रही हैं।
कला को मिला सम्मान
ना केवल जयपुर बल्कि देश के विभिन्न भागों में अपनी कला को प्रदर्शित कर चुकी रीता पांडे कई मंच पर सम्मानित भी हो चुकी हैं। वे कहती हैं कि ब्रेक के बाद जब दोबारा पेंटिंग की शुरुआत की तब लगा कि कुछ अलग करना है इसलिए मैंने इस बार ब्रश के स्थान पर नाइफ उठाया और यही सोच कर नाइफ से शुरुआत की। मुझे लगा शायद मैं इसमें बेहतर कर सकती हूं। वे कहती हैं कि उन्हें घूमने का बेहद शौक है, जहां जाती हूं अपने साथ पेंटिंग का सामान लेकर जाती हूं और प्रकृति को अपने कैनवास में कैद करती हूं। तकरीबन 20 साल से नाइफ पेंटिंग कर रही रीता कहती हैं कि पढ़ाई के साथ पेंटिंग करने की शुरुआत की थी। उस समय ब्रश से पेंटिंग किया करती थी, फिर जब नाइफ पेंटिंग के बारे में पता चला तो वर्ष 1980 में नाइफ पेंटिंग करना शुरू कर दिया। मूल रूप से रूडक़ी निवासी रीता शादी से पहले रुडक़ी में हॉबी क्लास संचालित करती थीं। शादी के बाद जयपुर आ गईं, यहां आकर पीएचडी में व्यस्त रहीं। बच्चे छोटे थे ऐसे में पेंटिंग भी कहीं पीछे छूट गई थी।

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