भगवान शिव की उपासना बहुत सामान्य रूप में की जाती है लेकिन उसकी अलग महत्ता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार सावन में भगवान शिव की विधि विधान से पूजाकर उनके मंत्र जाप जरूर करना चाहिए। शिव पूजन में ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप किया जाता है। कई शिवसाधक केवल ओम का ही जाप करते हैं. इसे ओमकार मंत्र कहा जाता है. यह सबसे सरल मंत्र है लेकिन इसके प्रभाव सबसे ज्यादा रहता है.
ॐ यानि ओम् या ओंकार को ही प्रणव अक्षर कहा जाता है। इस एक शब्द को ब्रह्मांड का सार माना जाता है, यह महाप्रभु का वाचक है। सृष्टि की शुुरुआत में सर्वप्रथम इस ओंकार का ही स्फुरण होता है। इसके बाद ही सात करोड़ मंत्रों का आविर्भाव होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि ॐ दरअसल त्रिदेवों से भी ऊपर की सत्ता है, यह परम शिव की सत्ता है. ॐ को ही परमपिता परमात्मा का रूप समझना चाहिए. ॐ से ही सृष्टि संचालन होता है और ॐ की शक्ति की वजह से ही सृष्टि की रचना हुई है.
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के मुताबिक मांडूक्योपनिषद में भूत, भवत् या वर्तमान और भविष्य–त्रिकाल–ओंकारात्मक ही कहा गया है। ओंकारात्मक शब्द ब्रह्म और उससे अतीत परब्रह्म दोनों ही अभिन्न तत्व हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। पद्मासन में बैठ कर इसका जप करने से मन को शांति मिलती है तथा एकाग्रता बढती है.