जयपुर. लालची अफसरों ने मानसरोवर की चौड़ी सड़कों का गला घोंट दिया है। मध्यम मार्ग का अलाइनमेंट इतना बिगाड़ दिया गया है कि अब यहां से वाहन चालकों व पैदल लोगों का आसानी से गुजरना तक मुश्किल हो गया है। मध्यम मार्ग के दोनों तरफ धड़ल्ले से भवन विनियमों के विपरीत हो रहे निर्माणों के कारण एेसे हालात पनपे हैं। हाईकोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए ऊंची व्यावसायिक इमारतें खड़ी हो रही हैं, लेकिन लालची अफसरों ने आंखें मूंद रखी हैं।
नतीजा, अवैध व्यावसायिक इमारतों में पार्किंग नहीं होने से सड़क पर वाहनों का जमावड़ा लग गया है और सड़कें सिकुड़ती जा रही हैं। परेशान स्थानीय लोगों ने सैकड़ों बार निगम जोन उपायुक्त, आयुक्त से लेकर स्वायत्त शासन विभाग के मुखिया तक को शिकायत की, लेकिन मिलीभगत के इस खेल में सब कुछ नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस मामले में पिछले दिनों ही मानसरोवर बचाओ विकास समिति ने नगर निगम अफसरों से कार्रवाई की गुहार की। अफसरों ने कार्रवाई की बजाय भवन विनियमों के विपरीत निर्माण करने वालों को अप्रत्यक्ष तौर पर संरक्षण दे दिया गया।
कहां-क्या हालात
विजय पथ चौराहे और उसके आस-पास तो भवन विनियमों के विपरीत निर्माण की बाढ़ सी आ गई है। स्थिति यह है कि यहां से वाहनों का आसानी से गुजरना किसी चुनौती से कम नहीं है। चौराहा इतना सिकुड़ गया है कि लो फ्लोर बस आने के दौरान तो काफी देर तक जाम से जूझना पड़ रहा है।
गोखले मार्ग और पटेल मार्ग के बीच मध्यम मार्ग पर होटल, व्यावसायिक कॉम्पलेक्स तक खड़ हो गए। आवश्यक पार्किंग नहीं होने से सड़क पर वाहनों का जमावड़ा।
रजत पथ से किरण पथ के बीच भी हालात दयनीय है। यह हिस्सा लगातार आवासीय से व्यावसायिक इमारतों में तब्दील होता जा रहा है। राहगीरों को सिकुड़ती सड़क से गुजरते वाहनों के बीच चलने की मजबूरी। किरण पथ व स्वर्ण पर भी यही स्थिति।
कावेरी पथ के आस-पास निगम ने एक-दो इमारतों पर कार्रवाई की, लेकिन पास दूसरे अवैध निर्माण को छेड़ा तक नहीं।
हाईकोर्ट के आदेश एेसे हुए हवा
मध्यम मार्ग पर मिश्रित भूउपयोग (मिक्स लैंडयूज) है। यानी, तय सेटबैक व अन्य लागू नियमों के तहत व्यावसायिक गतिविधि भी अनुज्ञेय है, लेकिन लोगों ने नियमों के विपरीत निर्माण कर व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर दीं।
एक याचिका के तहत हाईकोर्ट ने नगर निगम को बिना अनुमति संचालित एेसी सभी गतिविधियों को बंद करने के आदेश दिए।
व्यापारियों की भूउपयोग परिवर्तन के लिए कतार लग गई, लेकिन जीरो सेटबैक पर निर्माण होने के कारण एेसा नहीं हो सका। बाद में मामला ठण्डा हो गया तो निगम अफसरों की शह के कारण व्यावसायिक निर्माण बढ़ते गए।