राजीव गांधी की हत्या के बाद जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और गैर गांधी परिवार के सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तब सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर उनके खिलाफ ही कई लोगों के बगावत कर दी थी। जितेंद्र प्रसाद और राजेश पायलट जैसे दिग्गज नेताओं ने सोनिया गांधी के सामने अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।
14 मार्च 1998 को सोनिया गांधी अध्यक्ष बनने में कामयाब हुई। हालांकि अंदरखाने तब भी उनका विरोध होता रहा, लेकिन खुलकर कोई भी नेता उनके खिलाफ नही हो पाया। अध्यक्ष बनने के बाद 15 मई 1999 को लोकसभा चुनाव से ठीक एक पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शरद पंवार, पीए संगमा और तारिक अनवर जैसे नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़कर नई पार्टी का गठन कर लिया।
हालांकि 19 अप्रेल 1999 में एक वोट से वाजयेपी सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा ठोका, लेकिन मुलायम सिंह यादव और लेफ्ट के यू टर्न लेने से सोनिया गांधी को गहरा झटका लगा था।
बहुमत का आंकड़ा नहीं होने से कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई। उसके बाद सोनिया गांधी ने लगातार अध्यक्ष रहते पार्टी को मजबूत करने के साथ ही कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकारें बनवाई।साल 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सबसे लोकप्रिय और भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए की एक अजेय सरकार दिख रही थी।
लेकिन, सोनिया ने दोनों को ध्वस्त करके रख दिया। उनके आम आदमी नारे ने भाजपा के फील गुड और इंडिया शाइनिंग की हवा निकाल कर रख दी। यहीं नहीं सोनिया गांधी ने कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन बनाकर कई धर्म निरपेक्ष दलों को एकजुट किया और यूपीए चेयरपर्सन बनीं।
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद एक बार पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ली है। अब देखना ये कि आगामी चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में सोनिया गांधी का करिश्माई नेतृत्व क्या करिश्मा कर दिखाता है।