जयपुर

Kuldeep Jaghina Murder: बेखौफ हुआ खौफ, साढ़े 3 साल में हुई 6241 हत्याएं

Kuldeep Jaghina Shot Dead: आपने कभी मौत देखी है? नहीं तो कल्पना कीजिए कि आप उस बस में सवार हैं, जहां पांच मिनट तक मौत का तांडव चला। आंकड़ों के लिहाज से रोडवेज बस में सिर्फ एक जान गई लेकिन तड़ातड़ फायरिंग के बीच उन 55 बस सवारों की सांसें कितनी बार थमीं होंगी, किसी ने अंदाजा नहीं लगाया।

जयपुरJul 13, 2023 / 04:22 pm

Amit Vajpayee

Kuldeep Jaghina Shot Dead: आपने कभी मौत देखी है? नहीं तो कल्पना कीजिए कि आप उस बस में सवार हैं, जहां पांच मिनट तक मौत का तांडव चला। आंकड़ों के लिहाज से रोडवेज बस में सिर्फ एक जान गई लेकिन तड़ातड़ फायरिंग के बीच उन 55 बस सवारों की सांसें कितनी बार थमीं होंगी, किसी ने अंदाजा नहीं लगाया। उनकी आंखों ने जो खौफ का मंजर देखा और भुगता उसका जिम्मेदार कौन है। सुर्ख आंखों में पलता गुस्सा अब राजस्थान से खौफ का अंत चाहता है।

जनता गुस्से में है। हर मुट्ठी तनी है। सवाल सिर्फ एक… क्या पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना भर है। पुलिस का असली काम तो अपराध होने से रोकना है। पुलिस इस मोर्चे पर लगभग नाकाम है। पुलिस को भी पूरा दोष क्या दें, पुलिस तो सत्ताधीश नेताओं की मिजाजपुर्सी में अपनी ज्यादा ऊर्जा लगा रही है। किसी को रोके रखना है तो किसी को संतुष्ट रखना है। किसी का फोन सुनना है तो किसी को रिपोर्ट करना है। बस इसी उधेड़बुन में समय निकला जा रहा है।


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राज्य में पुलिस से अधिक आपराधिक गिरोह सक्रिय हैं। अपराधी बे-लगाम हैं, पुलिस लाचार और जनता भगवान भरोसे। लगातार बढ़ती वारदातें आम जन-मन को झकझोर रहीं हैं। लगता है अपराधियों में पुलिस का भय खत्म हो गया है। तभी तो इसी साल उदयपुर में बजरंग दल कार्यकर्ता राजू की गोली मारकर हत्या कर दी गई। सीकर में गैंगवार हुई। गैंगस्टर राजू ठेहट को उसकी विरोधी गैंग ने अंधाधुंध गोलियां बरसाकर चिरनिंद्रा में सुला दिया। पिछले साल नागौर कोर्ट के बाहर हरियाणा के गैंगस्टर संदीप विश्नोई की गोली मारकर हत्या कर दी। अलवर में बहरोड़ थाने में घुसकर हरियाणा के अपराधी गैंगस्टर पपला गुर्जर को छुड़ाकर ले गए। जोधपुर में सुरेश सिंह की पुलिस कस्टडी में दो शूटरों ने पांच गोली मारकर हत्या कर दी। जयपुर में अजय यादव को खुलेआम फायरिंग करके मार दिया गया।

अपनी खाल बचाने के लिए यह तर्क भी दिया जाता है कि बाहरी गैंग ज्यादा सक्रिय हैं। क्या यह सच में पुलिस की करनी पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं है? पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आए दिन सवाल उठते हैं। प्रश्न यह भी उठता है कि अपराधी इतना साहस कैसे कर पाते हैं कि वे पुलिस को छकाकर उसके लिए निरंतर चुनौती खड़ी कर दें।
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दरअसल जनता को दिखाने के लिए प्रतीकात्मक कार्रवाई पुलिस की कार्यशैली बन गई है। राजस्थान में बीते साढ़े तीन साल में 6 हजार 241 हत्याएं हो चुकी हैं। देखा जाए तो वर्ष 2020 से लगातार हत्याओं का आंकड़ा बढ़ रहा है। अपराध का ग्राफ बढ़ना राज्य के लिए खतरनाक है। जनता पुलिस से आस लगाए है लेकिन पुलिस अपराधियों के आगे बेबस है। लोगों के हिस्से में आते हैं सिर्फ आंसू। क्या ये घटनाएं बहुत ही बेशर्मी से हमारी व्यवस्था को मुंह नहीं चिढ़ा रही हैं?

अब तो चुनावी साल है। पुलिस को अब तो हरकत में आ जाना चाहिए। अपराधी को बस उसके आपराधिक कृत्य के आधार पर रोके न कि उसके राजनीतिक रसूख को ध्यान में रखकर अपने कदम पीछे खींचे। पुलिस के प्रति फिर भरोसा कायम होने के लिए जरूरी है कि सड़कों पर उसकी मुस्तैदी और हवालात में अपराधी नजर आएं। अन्यथा पुलिस के इकबाल पर फिर सवाल उठेगा।

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