जिस तरह से दिन प्रति दिन कोरोना का विकराल रूप सामने आ रहा था। हर एक सहमा- सहमा, डरा- डरा था। पता नहीं, कब- कहां, कैसे कोई चपेट में आ जाए। गुप्ता जी ने रेजीडेंसी सोसायटी के गेट पर तैनात गार्ड, के साथ- साथ हर फ्लैट होल्डर को मीटिंग के लिए वाट्स ऐप द्वारा पहले ही सख्त हिदायत दे दी थी। कोई भी बाहरी व्यक्ति अंदर प्रवेश न करें। जो भी बाहर जाएगा। पूरे नियम- कायदे का पालन करते हुए जाएगा, आएगा। सब समझा रहे थे, मामला कितना गंभीर है इसलिए सब इस आदेश से सहमत थे और दो महीने से बराबर अनुशासित थे, यहां तक बच्चों, लोगों से फ्लैट कैम्पस के पार्क, क्लब भी दो महीने से लगभग वीरान थे। कोई फ्लैट से बाहर नहीं निकल रहा था। स्थिति की भयावता को देखते हुए यह जरूरी भी था। मुम्बई, चेन्नई के बाद दिल्ली कोरोना से सबसे अधिक संक्रमित था। हालात बहुत ही खराब थे। लॉकडाउन खुलने के बाद अनलॉकडाउन में जिस तरह अचानक हालात बिगड़ते जा रहे थे, शासन- व्यवस्था फेल होती दिखाई दे रही थी। अस्पतालों में जगह, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ कम पड़ते जा रहे थे।
‘भाइयो और बहनो!’ सैक्रेटरी गुप्ता ने डायस संभाला और बोलना शुरु किया,’आज यह मीटिंग एक खास मुद्दे पर बात करने के लिए बुलाई है। आपको पता ही है। कोरोना ने किस तरह पुरी दुनिया को अपनी मु_ी में कर रखा है और अब तो स्थिति बहुत ही विस्फोटक होती जा रही है। केवल सरकार के इंतजामों के भरोसे इससे निबटना असंभव है, हमें भी अपने स्तर पर इससे निबटने के उपाय करने पड़ेंगे। वैसे तो हमने अपनी सोसायटी में पूरा प्रीकोसन रखा हुआ है लेकिन फिर भी एक बात है जो बार- बार साथियों ने ध्यान दिलाई है। हमारी सोसायटी में दो डॉक्टर भी हैं जो कोरोना हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपनी जान खतरे में डाल लोगों को बचाने में जुटे हैं। हमें इस बात का गर्व है। थोड़ा ही सही हमारी सोसायटी सहयोग दे रही है।
हम उनका सम्मान करते हैं लेकिन दूसरी महत्वपूर्ण गौर करने वाली बात यह भी है कि इनकी वजह से हमारे बीच कोरोना का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। खबरों में आता है कि फलां जगह फलां डॉक्टर, कम्पाउडर कोरोना पॉजिटिव हो गया जबकि ये लोग तो सबसे अधिक ध्यान रखने वाले लोग हैं। कुछ दिनों से हमारी सोसायटी में रहने वाले डॉक्टर घर आने लगे हैं, सोसायटी में कई लोगों ने मुझा से इस बारे में रिक्वेस्ट की है कि जब तक कोरोना समस्या का हल न हो जाए। इन डॉक्टरों से निवेदन करें कि वे जब तक स्थितियां ठीक नहीं हो जाती सरकार द्वारा उनके लिए हॉस्पिटल में, आस- पास अधिग्रहित उन्हीं होटलों, गेस्ट हाउसों में रहें जहां अब तक रहते थे। आप लोग निर्णय करें, क्या करना है। आपके इस बारे में सुझााव आमंत्रित हैं।’ कहकर गुप्ता जी ने डायस छोड़ दिया।
फिर खुसर- फुसर शुरु हो गई। मुझो आश्चर्य था। भला यह भी कोई मुद्दा है। इस पर क्या चर्चा, क्या सुझााव, वे डॉक्टर हमारी सोसायटी के हैं, अपनी सुरक्षा कैसे करनी है, अच्छी तरह समझाते हैं, समझा में नहीं आता, उनसे क्या खतरा हो सकता है? बहुत ही बेवकूफी भरी सोच है यह, क्या हम इतने गिर गए हैं। चढा साहब उठे, उनकी आदत है कहीं भी माइक देखते ही उन्हें न जाने क्या हो जाता है, सबसे पहले बोलने के लिए उठ खड़े होते हैं। भले कैसा भी विषय हो, उन्हें कुछ न कुछ बोलना ही है। मैं समझा गया इन्होंने या इन जैसे लोगों ने ही डॉक्टरों के खिलाफ ये मुहिम छेड़ी होगी।
‘गुप्ता जी सही कह रहे हैं।’ आरंभिक मंचीय औपचारिक सम्बोधन के बाद उन्होंने बोलना शुरु किया,’बहुत ही कठिन समय है हमें फूंक- फूंक कर कदम रखने होंगे, जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। हमें खुशी है हमारी सोसायटी के डॉक्टर महामारी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लोगों की जान बचा रहे हैं लेकिन इनकी वजह से सोसायटी में भी तो कोरोना आ सकता है, हमें इनसे बात करनी चाहिए।’ चढा के बाद दो- तीन और लोगों ने भी ऐसी ही बातें की, कुछ बोले तो नहीं पर उनके चेहरों से साफ झालक रहा था, वे भी यही चाहते थे कि डॉक्टरों को सोसायटी में नहीं आना चाहिए।
इससे पहले कि गुप्ता जी अपना निर्णय सुनाते, मैं डायस पर पहुंच गया,’पूरी दुनिया में अपनी- अपनी तरह से कोरोना वारियर्स का सम्मान कर रहे हैं। हमारे देश में भी कोरोना से लडऩे वाले, कोरोना को हराने के लिए अपने को जोखिम में डालने वाले लोगों के सम्मान में खुद प्रधानमंत्री ने लोगों से ताली, थाली बजाने, दीए जलाने की अपील की। सेना ने फूल बरसाए और एक हम हैं जो यह मानने, गर्व करने के बावजूद ऐसे समर्पित भले लोगों के लिए ऐसी घटिया सोच रखते हैं। मंैने देखा है जब भी किसी को कोई तकलीफ होती है, सबसे पहले भागकर हम इन्हीं के पास जाते हैं और ये हमारी परेशानी दूर करने का प्रयास करते हैं। कभी किसी को परेशान नहीं करते, जो बन पड़ता है करते हैं। शर्म आनी चाहिए बिना उनसे बात किए, उनका पक्ष जाने इस तरह की मीटिंग करने के लिए। मैं इस प्रस्ताव का विरोध करता हूं, बावजूद इसके अगर ऐसा हुआ तो मैं इसकी शिकायत करूंगा। नमस्कार!’ कहते हुए बिना किसी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए मैं गुस्से में हॉल से निकल गया।
रास्ते भर मारे गुस्से पूरी देह सनसना रही थी। हम लोग कितने संवेदनहीन, खुदगर्ज हो गए हैं कि अपने, अपनों से बाहर कुछ सोच ही नहीं पाते। भाषण मर्जी जितने दिलवा लो, ये होना चाहिए, ऐसे होना चाहिए, जब स्वयं पर बात आती है सारी नैतिकताएं धरी रह जाती हैं।
‘क्या हुआ बहुत जल्दी आ गए, मीटिंग खत्म भी हो गई, क्या बात थी?’ घर पहुंचते ही श्रीमती जी ने पूछा तो मैंने बताया, क्या हुआ था और मैं क्या कह आया हूं। ‘हाय राम! ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं सब, यह तो बहुत ही गलत है, सही कहा आपने।’ पूरी बात सुन श्रीमतीजी की प्रतिक्रिया थी।
‘हां पापा, मुझो तो विश्वास ही नहीं हो रहा, कोई ऐसी बात सोच भी कैसे सकता है भला।’ बेटे ने भी सहमति जताई। मैं उत्तर देने ही वाला था कि मोबाइल पर मैसेज की टॉन बजी। सोसायटी सैक्रेटरी गुप्ता जी का मैसेज था। ‘आनेवाले सोमवार को सायं चार बजे सोसायटी हॉल में सोसायटी के कोरोना वारियर्स डॉक्टर्स के सम्मान करने का निर्णय लिया है। आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है।’
गुप्ता जी सहित कुछ और फ्लैट वालों के भी व्यक्तिगत मैसेज थे जिसमें मेरे वक्तव्य की प्रशंसा करते हुए… डॉक्टर्स से माफी मांगने की बात कही गई थी।