साम्ब दशमी पर सूर्य पूजा की महिमा का वर्णन साम्ब पुराण में भी किया गया है। इसके अनुसार साम्ब श्रीकृष्ण की अष्टभार्यायों में से एक ऋक्षराज जाम्बवन्त की पुत्री जाम्बवती के पुत्र थे। अर्धनारीश्वर के सम्मिलित रूप से उत्पन्न होने से उनका नाम साम्ब रखा गया था। वे अत्यंत रूपवान और पराक्रमी थेे। इस कारण श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब दंभी और उद्दण्ड भी बन गए थे। उनके एक उत्पात के कारण स्वयं श्रीकृष्ण ने उन्हें श्राप दे दिया जिससे वे रोगी बन गऐे। बाद में सूर्यपूजा के प्रभाव से वे रोगमुक्त बन सके थेेे।
कथा के अनुसार एक बार देवर्षि नारद श्रीकृष्ण के दर्शन के द्वारका आए। सभी ने उन्हें प्रणाम किया परंतु साम्ब उन पर हँसने लगा। देवर्षि नारद ने उनको सबक सिखाने के लिए भगवान को अपने आगमन की सूचना देने को कहा। उस समय श्रीकृष्ण अंतःपुर में थे । साम्ब अंतःपुर में ही पहुंच गए जहां एक रानी से उन्होंने दुव्र्यवहार किया। इसपर श्रीकृष्ण ने साम्ब से कहा कि तुमने रूपवान शरीर के दम्भ में दुःसाहस किया है। इसलिए मैं तुम्हें कुष्ठ रोग से पीड़ित होने का श्राप देता हूँ।
श्रीकृष्ण के श्राप के प्रभाव से कुष्ठ रोग से ग्रसित साम्ब का सम्पूर्ण शरीर खराब हो गया। कुष्ठ रोग के कारण साम्ब चलने में भी असमर्थ हो गए थे । जाम्बवती ने अपने पुत्र की दयनीय दशा देखकर भगवान से इसके निवारण की प्रार्थना की। इस पर श्रीकृष्ण ने सूर्य पूजा का उपाय बताया। साम्ब ने भगवान सूर्य की उपासना की जिससे प्रसन्न हो कर सूर्यदेव प्रकट हुए और साम्ब को रोग मुक्त कर दिया। जहां साम्ब ने सूर्य आराधना की थी वह स्थान कोणार्क तीर्थ स्थल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।