सदव्यहार ही सदविचारों की नींव—श्रीजी भगवान की सेवा का अर्थ है कि जीव मात्र के प्रति तुम्हारा सद व्यवहार होना चाहिए और सदव्यहार सदविचारों की नींव है। यह बात बरसाना धाम की भागवत कथाचार्य श्रीजी ने गोविन्ददेवजी मंदिर के सत्संग भवन में महंत अंजनकुमार गोस्वामी के सान्निध्य में चल रही भागवत कथा में कही। कथाचार्य ने कहा कि विचारों की शुद्धि व सत्संग में मग्न रहने वाला ही परमात्मा की कृपा को प्राप्त करता है। लेकिन आज लोगों के विचारों में शुद्धि नहीं है। लोग एक दूसरे का बुरा करने में लगे रहते है। तुम्हारी जिन्दगी में जो होना है वो सब तय है। जो तुमने जगत को दिया है,वो ही तुम्हें मिल रहा है। प्रेम दोगे तो प्रेम मिलेगा घृणा दोगे तो घृणा मिलेगी। श्रीमद भागवत भी यही कहती है। व्यक्ति जैसे कर्म करता है,उसी के अनुरूप उसे फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने धु्रव चरित्र पर बोलते हुए कहा कि मात्र 5 वर्ष की उम्र में अवस्था में ध्रुव को दर्शन देकर अखंड राज्य प्रदान करके उनके लिए ध्रुव लोक का निर्माण किया।