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जयपुर

भगवान का स्मरण ही मनुष्य का मूल उद्देश्य

भगवान को प्रगट करने के लिए प्रेम की आवश्यकता होती है, जीव को सर्वात्मा श्री हरि का श्रवण और स्मरण ही जीवन मूल उद्देश्य होना चाहिए।

जयपुरJun 07, 2018 / 01:01 pm

Devendra Singh

shankracharya

भगवान का स्मरण ही मनुष्य का मूल उद्देश्य

भगवान का स्मरण ही मनुष्य का मूल उद्देश्य
जयपुर। भगवान को प्रगट करने के लिए प्रेम की आवश्यकता होती है, जीव को सर्वात्मा श्री हरि का श्रवण और स्मरण ही जीवन मूल उद्देश्य होना चाहिए। षट्वांग नाम के राजा ने ढाई क्षण के ध्यान मात्र से मुक्ति को प्राप्त कर लिया। यह बात काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने वैशाली नगर जयपुर में निम्फ एकेडमी प्रांगण में चल रही भागवत कथा में कही। उन्होंने कहा कि पापों की सजा सभी को भोगना पड़ता है ईश्वर के सम्मुख होना ही धर्म है और उनके विपरित होना ही अधर्म है। चर और अचर जो सम्पूर्ण सृष्टि है वह विराट भगवान का ही स्वरूप है ब्रम्ह की एकता का दर्शन कराना ही श्रीमद्भागवत का उद्देश्य है। इससे पूर्व पादुका पूजन गुरूपीठ परम्परा अनुसार सविधि सम्पन्न हुआ ।कार्यक्रम के आयोजक सत्यपाल सिंह, वीपी सिंह ने पूजन करवाया।

सदव्यहार ही सदविचारों की नींव—श्रीजी

भगवान की सेवा का अर्थ है कि जीव मात्र के प्रति तुम्हारा सद व्यवहार होना चाहिए और सदव्यहार सदविचारों की नींव है। यह बात बरसाना धाम की भागवत कथाचार्य श्रीजी ने गोविन्ददेवजी मंदिर के सत्संग भवन में महंत अंजनकुमार गोस्वामी के सान्निध्य में चल रही भागवत कथा में कही। कथाचार्य ने कहा कि विचारों की शुद्धि व सत्संग में मग्न रहने वाला ही परमात्मा की कृपा को प्राप्त करता है। लेकिन आज लोगों के विचारों में शुद्धि नहीं है। लोग एक दूसरे का बुरा करने में लगे रहते है। तुम्हारी जिन्दगी में जो होना है वो सब तय है। जो तुमने जगत को दिया है,वो ही तुम्हें मिल रहा है। प्रेम दोगे तो प्रेम मिलेगा घृणा दोगे तो घृणा मिलेगी। श्रीमद भागवत भी यही कहती है। व्यक्ति जैसे कर्म करता है,उसी के अनुरूप उसे फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने धु्रव चरित्र पर बोलते हुए कहा कि मात्र 5 वर्ष की उम्र में अवस्था में ध्रुव को दर्शन देकर अखंड राज्य प्रदान करके उनके लिए ध्रुव लोक का निर्माण किया।

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