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जयपुर

सेंसर बताएगा मिट्टी का हाल

150 रुपए से भी कम है सेंसर की कीमतसेंसर की मदद से पानी की खपत को 35 फीसदी कम किया जा सकता है

जयपुरOct 14, 2019 / 11:49 pm

Suresh Yadav

The sensor will tell the condition of the soil

The sensor will tell the condition of the soil

जयपुर।
सूखे और जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया के अधिकांश देश पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से जल की उपलब्धता घटती जा रही है, उससे भविष्य में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। भारत देश भी विविधताओं से भरा हुआ है। विभिन्न राज्यों की जलवायु अलग-अलग है। जल की घटती उपलब्धता को देखते हुए शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सेंसर विकसित किया है जो कि मिट्टी में मौजूद नमी की मात्रा को माप सकता है। इससे सिंचाई के लिए उपयोग होने वाले पानी की जरूरत को 35 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
एक अनुमान के मुताबिक धरती पर उपलब्ध साफ पानी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कृषि कार्यों पर खर्च हो जाता है । यही नहीं पिछले 50 वर्षों में कृषि के लिए जल की मांग तीन गुना बढ़ गई है। अनुमान है कि दुनिया भर में 2050 तक, सिंचाई के लिए पानी की मांग में और वृद्धि होगी और यह 19 से 20 फीसदी तक बढ़ सकती है।
नेक्टिकट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस सेंसर को कनेक्टिकट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी टेस्ट किया है। कनेक्टिकट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसके एक प्रोटोटाइप को तारों की सहायता से एक उपकरण से जोड़ दिया जोकि, सेंसर द्वारा जुटाए गए आंकड़ों को एकत्रित करने में सक्षम था। इसके साथ ही उन्होंने इस सेंसर के एक व्यावसायिक रूप से तैयार मॉडल को भी बदलते मौसम में टेस्ट किया है। इन दोनों ही परीक्षणों से उन्हें उत्साहजनक आंकड़े प्राप्त हुए हैं । वैज्ञानिकों ने पाया कि यह सेंसर अपनी पूर्वनिर्धारित 10 महीनों की अवधि तक लगातार सफलतापूर्वक तरीके से मौसम में आ रहे बदलावों और उसके मिट्टी में मौजूद नमी पर पड़ रहे प्रभावों को दर्ज करने में सफल रहा था।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह सेंसर मिट्टी में नमी को मापने के लिए वर्तमान में उपलब्ध उपकरणों की तुलना में काफी छोटा और सुविधाजनक हैं। आकार में छोटे होने के कारण इसकी लागत भी कम आती है।
जमीन के नीचे उपस्थित चीजों को मॉनिटर करना अपने आप में एक कठिन कार्य है । इसके अलावा इस कार्य के लिए मौजूदा रूप से उपलब्ध सेंसर बहुत महंगे हैं। ऐसे में यह नया सेंसर पानी किसी वरदान से कम नहीं है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह वर्तमान में उपलब्ध सेंसरों से काफी सस्ता है। जहां इसकी कीमत 2 अमेरिकी डॉलर (150 रुपये) से भी कम है, वहीं दूसरी ओर अन्य सेंसर और तकनीकों की कीमत 7,000 से 70,000 रुपए के बीच है। साथ ही कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित यह नई तकनीक, जल विज्ञान के मॉडल के विकास के लिए जरुरी उच्च रेजॉलूशन का डेटा प्रदान कर सकती है।
यह सेंसर इसलिए भी उपयोगी है, क्योंकि छोटा और सस्ता होने के कारण इसे दुनिया के किसी भी हिस्से में भेजा और उपयोग किया जा सकता है। जल संसाधनों के बेहतर उपयोग और अच्छी फसल पाने के लिए मिट्टी में नमी की सटीक जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है और यह सेंसर यह काम बखूबी कर सकता है।
जबकि भारत में जहां 3.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर है, यह तकनीक और महत्वपूर्ण हो जाती है । इसकी सहायता से भूजल और नदियों पर बढ़ रहे दबाव को कम किया जा सकता है । साथ ही फसलों को जलवायु परिवर्तन और सूखे जैसी समस्याओं से बचने में प्रभावी रूप से मदद मिल सकती है।

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