scriptराजस्थान कांग्रेस के लिए उठापटक वाला रहा साल 2020, दस प्रमुख घटनाएं कांग्रेस इतिहास में दर्ज | The year 2020 was not good for Rajasthan Congress | Patrika News
जयपुर

राजस्थान कांग्रेस के लिए उठापटक वाला रहा साल 2020, दस प्रमुख घटनाएं कांग्रेस इतिहास में दर्ज

-विधायकों की बाड़ाबंदी, सरकार के बचाने के लिए बहुमत साबित करने और राजभवन का घेराव जैसी घटनाएं भी हुईं

जयपुरDec 24, 2020 / 10:51 am

firoz shaifi

govind dotasara

govind dotasara

फिरोज सैफी/जयपुर।

साल 2020 कोरोना काल के चलते आमनजन के साथ-साथ राजनीतिक दलों के लिए भी किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा है, खासकर सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए। प्रदेश कांग्रेस के लिए साल 2020 बहुत ही उठा पटक वाला साल रहा है।

इस साल प्रदेश कांग्रेस में कई ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिन्हें सालों तक याद रखा जाएगा, चाहे वो तत्कालीन पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बगावत का मामला हो, या फिर सरकार बचाने के लिए बाड़ाबंदी हो या विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर सरकार और राजभवन के बीच टकराव का मामला हो। ऐसे ही 10 ऐसी बड़ी घटनाएं साल 2020 में कांग्रेस के इतिहास में दर्ज हुई हैं, जिक्र सालों तक किया जाएगा। ऐसी ही कुछ घटनाएं हैं।

 

गुजरात-मध्य प्रदेश के विधायकों की बाड़ाबंदी
मार्च माह में गुजरात में तीन राज्यसभा सीटों पर चुनाव खरीद फरोख्त की आशंका तो वहीं मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के विधायकों की बगावत के बाद गुजरात और मध्य प्रदेश के विधायकों को अलग-अलग बाड़ाबंदी के लिए जयपुर शिफ्ट किया गया था।

गुजरात के विधायक जहां 11 मार्च को जयपुर पहुंचे थे ,जिन्हें दिल्ली रोड स्थित शिव विलास रिसोर्ट में शिफ्ट किया गया था तो मध्य़ प्रदेश के 80 कांग्रेस विधायकों भोपाल से विशेष विमान में जयपुर लाया गया था। मध्य प्रदेश के 44 विधायकों को जयपुर के ब्यूना विस्टा रिसॉर्ट और 38 विधायकों को ट्री हाउस रिसॉर्ट में ठहराया गया था।

मध्य प्रदेश के विधायक जहां 16 मार्च को वापस चले गए थे तो वहीं गुजरात कांग्रेस के विधायक कोरोना के चलते स्थगित होने के बाद विशेष विमान से 24 मार्च को गुजरात भेजे गए थे। गुजरात के साथ राजस्थान में भी तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने थे जिन्हें स्थगित किया गया था।

राज्यसभा चुनाव के लिए बाड़ाबंदी
कोरोना के बीच प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव की घोषणा हुई। भाजपा की ओर से संख्या बल नहीं होने के बावजूद दूसरा प्रत्याशी उतारने के बाद कांग्रेस ने विधायकों में सेंध लगने और खरीद फरोख्त की आशंका के चलते होटल शिव विलास और उसके बाद अन्य लग्जरी रिसोर्ट में विधायकों की बाड़ाबंदी की थी।

इस बाड़ाबंदी में कांग्रेस के कई केंद्रीय नेता भी शामिल हुए थे। 19 जून को हुए मतदान में संख्या बल के हिसाब से दो सीट कांग्रेस के खाते में गईं। कांग्रेस ने केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को प्रत्याशी बनाया था। जबकि एक सीट भाजपा के खाते में गई। भाजपा के दूसरे प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। इसी के साथ राजस्थान से कांग्रेस के राज्यसभा सांसदों की संख्या 3 हुई। 2019 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह राजस्थान से राज्यसभा सांसद चुने गए थे।

राज्यसभा चुनाव में खरीद फरोख्त की शिकायत
राज्यसभा चुनाव की घोषणा के बाद पहली बार सरकार को राज्यसभा चुनाव में विधायकों की खरीद फरोख्त की आशंका हुई, जिसके बाद एसीबी में मामला दर्ज कराया था। मुख्य सचेतक महेश जोशी के पत्र के बाद एसीबी ने जांच शुरू कर दी थी। बाद में ये मामला एसओजी को ट्रांसफर किया गय़ा।

एसओजी की गई शिकायत में राज्यसभा चुनाव में खरीद फरोख्त के लिए बड़ी रकम दिल्ली से आने की मिली थी, जिसके बाद एसओजी ने जयपुर दिल्ली हाइवे और हरियाणा से आने वाली गाड़ियों की कड़ी नाकाबंदी कर जांच की थी।

राजद्रोह के नोटिस से नाराज हुए पायलट
राज्यसभा चुनाव में खरीद फरोख्त और सरकार गिराने की साजिशों के मामले 12 जुलाई को सचिन पायलट, विश्ववेंद्र सिंह और रमेश मीणा को राजद्रोह की धाराओं में एसओजी का नोटिस जारी जारी किए जाने से सचिन पायलट और उनके खेमे से जुड़े नेता नाराज हो गए। हालांकि ये नोटिस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई नेताओं को भी दिय़ा गया था, लेकिन इस नोटिस को पायलट खेमे ने आत्मसम्मान पर चोट बताया और विधायक दल की बैठक दूरी बना ली।

सीएम आवास पर विधायक दल की बैठक में पायलट खेमे के विधायकों का इंतजार होता रहा, लेकिन वे नहीं आए, जिसके बाद सीएम आवास से बसों के जरिए विधायकों को दिल्ली रोड स्थित एक होटल में शिफ्ट किया गय़ा। तो वहीं पायलट कैंप मानेसर के होटल में शिफ्ट हो गया। पायलट के साथ 19 विधायक थे। इस दौरान पायलट कैंप के विधायकों के बयान लेने के लिए एसओजी को कई दिन मानेसर और दिल्ली में भी डेरा डालना पड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।


35 दिन बाड़ाबंदी से चली सरकार
वहीं 12 जुलाई को सरकार गिराने की साजिशों के आरोपों और पायलट कैंप की बगावत के बीच विधायकों को दिल्ली रोड स्थित एक होटल में शिफ्ट किया गया। इनमें निर्दलीय, बीटीपी, माकपा और बसपा से कांग्रेस में आए विधायक भी थे।

सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं ने भी जयपुर में कैंप किया, इनमें राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरेजवाला, अजय माकन, राजीव सातव, अविनाश पांडे और विवेक बंसल रणनीति बनाते रहे। यहां से फिर विधायकों को जैसलमेर शिफ्ट किया गया। बाड़ाबंदी के बीच ही विधायकों को बकरीद और रक्षाबंधन का पर्व भी मनाना पडा , साथ ही 35 दिन तक सरकार भी बाड़ाबंदी से ही चलती रही।

डिप्टी सीएम सहित तीन मंत्री बर्खास्त
बाड़ाबंदी के बीच सरकार गिराने की साजिशों के आरोपों के बीच कांग्रेस आलाकमान ने डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट, कैबिनेट मंत्री विश्ववेंद्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। साथ ही पायलट को पीसीसी अध्यक्ष पद से भी बर्खास्त करते हुए शिक्षा राज्यमंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को नया प्रदेशाध्यक्ष बनाया। इसके अलावा पायलट कैंप का साथ देने वाले युवा कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर और एनएसयूआई अध्यक्ष पद से अभिमन्यू पूनिया को हटाया दिया गया।

साथ ही प्रदेश कांग्रेस की वर्तमान कार्यकारिणी, जिलाध्यक्षों, प्रकोष्ठों और विभागों को भंग कर दिया गया। बाड़ाबंदी के बीच ही गोविंद सिंह डोटासरा के रूप में 6 साल बाद प्रदेश कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिला। 21 जनवरी 2014 से 14 जुलाई 2020 तक सचिन पायलट लंबे समय तक पीसीसी चीफ रहे।

सत्र बुलाने के लिए राजभवन से टकराव
विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने के लिए कैबिनेट के प्रस्ताव को वापस भेजने के बाद सरकार और राजभवन के बीच टकराव भी हुआ। कैबिनेट ने तीन बार सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा जिसे तीनों बार ही राजभवन ने प्रस्ताव में कमियां गिनाते हए उन्हें वापस कर दिया।

जिसके बाद 24 जुलाई को होटल की बाड़ाबंदी से विधायकों को साथ लेकर राजभवन पहुंचे, जहां कांग्रेस और सरकार समर्थित विधायक राजभवन के लॉन में कई घंटों तक धरने पर बैठे रहे। इस दौरान विधायकों ने जमकर नारेबाजी की। विधायकों के इस तरह घेराव करने से राज्यपाल कलराज मिश्र भी बेहद नाराज हुए। हालांकि भाजपा ने इस मामले में कांग्रेस पार्टी और सरकार पर राज्यपाल को धमकाने का आरोप लगाते हुए केंद्र से राजभवन की सुरक्षा अर्द्ध सैनिक बलों के सुपुर्द करने की मांग की।


प्रदेश प्रभारी पद से अविनाश पांडे की छुट्टी
सचिन पायलट कैंप की वापसी और विधानसभा में विश्ववास मत हासिल के बाद भले ही गहलोत सरकार पर आया सियासी संकट टल गया था, लेकिन गहलोत कैंप को उस वक्त तगड़ा झटका लगा था जब कांग्रेस आलाकमान ने 16 अगस्त को सीएम गहलोत के विश्वस्त माने जाने वाले प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव पद से छुट्टी कर दी थी। सरकार पर आए सियासी संकट के दौरान प्रदेश प्रभारी पांडे सरकार के लिए संकट मोचक की भूमिका में थे, सरकार बचाने और विपक्ष को घेरने के लिए तैयारी की जाने वाली रणनीति बनाने वाले थिंक टैंक के प्रमुख थे। अविनाश पांडे के स्थान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को प्रदेश कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया था। माकन को राहुल गांधी के भरोसेमंद माना जाता है।

पंचायत चुनावों में हार
हाल ही में प्रदेश के 20 जिलों में हुए पंचायतों और जिला परिषद चुनाव में मिली हार ने कांग्रेस पार्टी के आला नेताओं को अंदर तक हिला दिया था। हालांकि नगर निगम और स्थानीय निकायों में कांग्रेस को सफलता जरूर मिली, लेकिन पंचायत चुनाव में मिली हार का गम कांग्रेस नेताओं के मुंह से निकल ही जाता है। 18 दिसंबर को सरकार के दो साल के कार्यकाल पूरा होने के मौके पर जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संगठन पर निशाना साधते हुए कहा था कि सरकार की योजनाओं के बारे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कोई जानकारी नहीं रहती है, इसलिए वो जनता के बीच सरकार के कामकाज को ले जाने में असफल रहते हैं।

वहीं पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने पंचायत चुनाव में मिली हार के लिए जनप्रतिनिधियों की जनता से दूरी को हार का कारण बताया था। डोटासरा का कहना है कि कोरोना के चलते जनप्रतिनिधि जनता गांवों-ढांणियों में नहीं गए, जिससे जनता को लगा कि जनप्रतिनिधियों ने उनकी सुध लेना बंद कर दिया है, इससे जनता नाराज थी।

6 माह से बिना कार्यकारिणी के अध्यक्ष
प्रदेश कांग्रेस के लिए ये भी एक किसी बुरे सपने से कम नहीं है कि प्रदेश कांग्रेस जैसा संगठन पिछले 6 माह से बिना कार्यकारिणी के चल रहा है, इस दौरान नगर निगम के चुनाव भी हुए तो पंचायत-जिला परिषद के साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी हुए। राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में ये ऐसा पहला मौका है जब तीन तीन बड़े चुनाव बिना संगठन के लड़े गए।

पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की नियुक्ति 14 जुलाई को हुई थी और उसी दिन प्रदेश कार्यकारिणी जिलाध्यक्षों और विभिन्न प्रकोष्ठों विभागों को भंग कर दिया गया था, तब लेकर आज तक प्रदेश कांग्रेस को नई कार्यकारिणी का इंतजार है और ये इंतजार अब नए साल में ही खत्म होगा।

पंचायत चुनावों में मिली हार की एक वजह डोटासरा प्रदेश कार्यकारिणी के नहीं होने को भी बता चुके हैं। प्रदेश कार्यकारिणी के अभाव में चुनावों का प्रबंधन बेहतर तरीके से नहीं हो पाया, और प्रदेश कांग्रेस को टिकट वितरण से लेकर चुनावी प्रबंधन तक के लिए विधायकों पर निर्भर रहना पड़ा।

Home / Jaipur / राजस्थान कांग्रेस के लिए उठापटक वाला रहा साल 2020, दस प्रमुख घटनाएं कांग्रेस इतिहास में दर्ज

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो