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जयपुर

ये हैं होली की गालियां

ये हैं होली की गालियां

जयपुरMar 08, 2020 / 09:31 pm

Jagdish Vijayvergiya

ये हैं होली की गालियां

ये हैं होली की गालियां

– जितेन्द्र सिंह शेखावत
फागण (फाल्गुन मास) लगते ही गुलाबीनगरी में गालीबाजी के रंग बिखरना शुरू हो जाते थे। कुछ लोग आज भी यह परम्परा निभा रहे हैं। इसमें समाज सुधार का भी ख्याल रखा जाता था। बाल विवाह, दहेज, मृत्युभोज आदि पर कटाक्ष होते थे। सवाई राम सिंह द्वितीय की राठौड़ी महारानी के संग जोधपुर से आए लालाजी कायस्थ ने चांदपोल के मालियों का मोहल्ला में गाली गायन की अलख जगाई। उनका गाली गायन लोगों को इतना पसंद आया कि कई अखाड़े कायम हो गए। इनमें हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी जुड़ गए। गालीबाजी के साथ लाठीबाजी भी जुड़ गई। सवाल-जवाब की टसल में लाठियां उठ जाती। कस्तूरमल टांक और महेन्द्रकुमार पाटनी ने मोहरों की थैलियां रखकर जौहरी बाजार में अल्ले-पल्ले के पहलवानों का मुकाबला करवा दिया था। गायन से पहले ही कनात में लाठियां बंध जाती थी। भिड़ंत के बाद भांग ठंडाई की गोठ में राजीनामा हो जाता। दामोदर लम्बरी ने उस्ताद को पगड़ी व चेले को खलीफा बनाने की परम्परा शुरू की। पुरानी बस्ती में बारह भाइयों के अखाड़े से ही चौराहे का नाम बारह भाइयों का चौराहा पड़ा। इसमें चुन्नीलाल दिलवाले, नान उस्ताद, नाथी पुरोहित, नाथू नाई, बदरी व्यास आदि नामी गालीबाज हुए। किसी पर जुल्म होता देख ये बारह भाई अपनी लाठियां उठा लेते थे। बाईस मित्रों ने बाईसी की घेर कायम की। गुट्टन बीजन और गुलाब भरावा ने गायन में ख्याति प्राप्त की। प्रेमप्रकाश सिनेमा पर गुल्लन-सल्लन का अखाड़ा था। सल्लन का नाम सुलेमान हाजी था। हारने वाले को गुलाल लगवाने के साथ चूरमा-दाल-बाटी की गोठ करनी पड़ती थी।
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गाली गायन के पुराने गायक कैलाश गौड़ के संग्रह से कुछ पुरानी रचनाएं
मुनै भी दिखल्याओ छैल,
जैपर किस्योक छै।
भौरी लालजी वाली कहै छै,
बां बिना देख्या नहीं रह्वे छै।
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थांको मन होवे तो,
मोहब्बत करल्यो प्राण प्यारी।
तस्वीर खिंचा सीना पर,
राखूंला हर दम थारी।
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देखो जयपुर शहर बण्यो,
कैसो गुलजार छै।
खाणा पीणा अर फैशन मै,
डूब्या सब नर नार छै।
बूढ़ी जवान और छोटी-मोटी,
सिर पर राखे दो दो चोटी।
यांकी आदत पडग़ी खोटी,
डोले सरे बजार छै।
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काईं भी या खो सरकार,
डूबसी अब चौड़े मझधार।
नेता एक नहीं गम ख्वार,
फूल गया हाथ हकुमत नै लेर।
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प्रीत करो तो रीत निभाओ,
मानो प्राण पियारी। 
म्है नोहरा नहीं काड्या थांका,
थै खुद बांधी छै यारी।
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समस्या सारी हल हो जाणी,
बहै गटर का पाणी।
ईं सै बेमार्या हो जासी,
बदबू फै ले चारुमैर।
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कोई ब्याव करा द्यो यार,
कुवांरो डोल रह्यो,
सवामणी बोल रह्यो।
बचपन बीत जवानी आई,
सिर पर धोळा आया।
करी खुसामद जणां जणा की,
पण नहीं पड़ रही छै पार।
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मै कहूं छूं यो समचार,
कोई चीज नहीं पावै,
महंगाई खायां जावै।
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अये ओ नखराली,
मैलो दिखाऊं सांगानेर को।
जल्दी जल्दी चालो,
काम नहीं छै देर को।
मोटर पाणी मै ज्यूं जावे,
जियां सांप पलेटा खावे। 
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मुखड़ो दमके घूंघट म,
गौरी दमके जैसे चांद गगन म।
बोर जड़ाउ,शीश फूल सिर,
अतर लगा लियो हीनो।
बाळ बाळ सिणगार किनो,
चमके जैसे चांद गगन म।
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या जालिम नखरादार,
जुलम करती वाह री।
जादुगरी हद करती है,
अधर पधर पग धरती है,
पाणी भरबा जाती,
चाल चाल घूमर खाती,
जाणै मस्त हुयोड़ो हाथी।

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