उन्होंने कहा कि सीएसआर में कई कम्पनियां काम कर रही हैं, लेकिन वह काम दिख नहीं रहा है। सामाजिक कार्य करवानों वालों में आज भी लोग टाटा ( Tata ) -बिडला (
Birla ) को ही याद करते हैं। इसीलिए अब कंपनियों को आगे आकर टाटा बिडला की तरह स्थाई पहचान के काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीएसआर गतिविधियों के संचालन के लिए कंपनियां स्वायत्त है, ऐसे में ठोस विकास के कार्य, पेयजल, वास्थ्य, शिक्षा, गौशालाओं आदि के लिए किए जाएंगे तो अधिक से अधिक को सुविधा मिलेगी।
वहीं, विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुबोध अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार निवेशकों पर विश्वास करते हुए स्वघोषणा के आधार पर प्रदेश में उद्योग लगाने की छूट देने की पहल कर चुकी है। उन्होंने बताया कि नई औद्योगिक नीति में ग्रीन पॉलिसी, स्टार्टअप और औद्योगिकोन्मुखी व्यवस्था होगी।
182 कम्पनियों ने खर्च किए 368 करोड़ रुपए समिट में राजस्थान सीएसआर रिपोर्ट 2019 का भी लोकापर्ण किया गया। साथ ही बताया गया कि साल 2017-18 में प्रदेश में 182 कम्पनियों ने सीएसआर में 368 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सीएसआर का सर्वाधिक खर्च 131 करोड़ रुपए शिक्षा व कौशल विकास पर किया गया है। शिक्षा में बेहतरी के लिए 192 प्रोजेक्ट चलाए गए। वहीं हेल्थकेयर पर 104 करोड़, ग्रामीण विकास पर 51 करोड़, पर्यावरण पर 29 करोड़, ग्रामीण खेल पर 20 व लैंगिक समानता पर 10 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सीएसआर में बेहतर कार्य करने वाली 17 संस्थाओं को सीएसआर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
राजस्थान में गैर सरकारी संस्थाए और सरकारी संगठन मिलकर सी एस आर के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध राशि का बहुत कम हिस्सा ही जुटा पा रही है ।
सरकारी तंत्र को केवल जानकारी, पुरस्कार और नेटवर्किंग कांफ्रेंस से आगे बढऩा पड़ेगा। सी एस आर के प्रोजेक्ट डेवलपमेंट और मैनेजमेंट के लिए अलग से ग्रुप बनाकर पहल करनी होगी और जमीनी स्तर पर इम्प्लीमेंट अन्य संस्थाओ से सहयोग करना होगा।
कुलभूषण कोठारी, प्रबंध न्यासी,प्रथम राजस्थान