जयपुर

राजस्थान के 3 जिलों के तीन गांवों के नाम बदले, मोदी सरकार ने दी मंजूरी

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजस्थान के तीन गांव और गांव के रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने के लिए मंजूरी दे दी है।

जयपुरMar 21, 2019 / 08:50 am

santosh

जयपुर। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजस्थान के तीन गांव और गांव के रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने के राज्य सरकार के प्रस्वात काे हरी झंडी दे दी है। अब झुंझुनूं जिले के इस्माइलपुरा का नाम पिचाना खुर्द, जालोर जिले के नरपाड़ा का नाम नरपुरा और राजसमंद जिले के लक्ष्मणगढ़ का नाम अडावाला होगा।
 

इस्माइलपुरा में मुख्य रूप से जाटों, राजपूतों और ब्राह्मणों की आबादी है। ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों के अनुसार गांव को पिचाना खुर्द के नाम से जाना जाता था। हम अपने गांव का मूल नाम पाने की मांग कर रहे थे। लक्ष्मणगढ़ पहले से ही अडावाला के रूप में लोकप्रिय है। पिछले साल सरकार ने गांवों के नाम बदलने के प्रस्ताव भेजे थे। उस समय कांग्रेस विपक्ष में थी और उसने राजे सरकार के इस कदम की आलोचना की थी।
 

मालूम हाे कि पिछले साल भी राजस्थान के एक गांव का नाम बदला गया था। बाड़मेर जिले के ‘मियों का बाड़ा’ गांव का नाम अब बदलकर ‘महेश नगर’ किया गया था। ब्रिटिश शासन में इस गांव का नाम ‘महेश रो बाड़ो’ था, जो बाद में मियां का बाड़ा कहलाया जाने लगा। गांव का नाम बदलने की मांग बहुत पुरानी थी। इस गांव में भगवान शिव का मंदिर के होने की वजह से इसका नाम महेश नगर रखा गया।
 

गांव के लोगों का कहना था कि अल्पसंख्यक बाहुल्य नहीं होते हुए भी मियों का बाड़ा नाम होने से ग्रामीणों को शादी व अन्य सामाजिक आयोजनों में कई सवाल-जवाब का सामना करना पड़ता था। पचास साल से लगातार नाम परिवर्तन की मांग हो रही थी। वर्ष 2010 में निर्वाचित सरपंच हनुवंत सिंह ने ग्रामसभा का पहला प्रस्ताव गांव का नाम परिवर्तन करने का लिया। प्रस्ताव दफ्तर- दर-दफ्तर घूमता रहा और अफसर घूमाते रहे। गांव का नाम बदलने के तमाम तर्क को खारिज किया गया। ग्रामीणों के लिए बड़ा तर्क था कि गांव अल्पसंख्यक बाहुल्य नहीं है तो एेसा नाम क्यों? इससे उनको व्यावहारिक जीवन में रिश्तेदारी और सामाजिक आयोजन पर होने वाले सवाल-जवाब अखरते हैं।
 

वर्ष 2012 में केंद्र सरकार की ओर से आए एक नियम में कहा गया कि किसी गांव का प्राचीन इतिहास या कोई नाम हो या फिर शहीद के नाम पर हो तो उसका नाम बदला जा सकता है। इस पर ग्राम पंचायत के प्रस्ताव में यह जोड़ा गया कि आजादी से पहले इस गांव का नाम महेश रो बाड़ो था। सेटलमेंट के दौरान सरकारी कार्मिकों की भूल से नाम बदला गया। यहां अल्पसंख्यक बाहुल्य लोग नहीं है। वर्ष 1965 में दो परिवार आए थे। एेतिहासिक प्रमाण के आधार पर नाम बदला जाए।

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