साल 2008 में पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के बर्धमान टाउन से 35 किलोमीटर दूर एक बांकुरा-मैसग्राम रेल लाइन पर एक रेलवे स्टेशन बनाया गया। लेकिन इस स्टेशन के निर्माण के बाद से ही इसके नाम को लेकर विवाद हो गया। दरअसल, इस स्टेशन का नाम पहले रैनागढ़ रखा गया था, लेकिन रैना गांव के लोगों को यह बात जमी नहीं। ऐसे में रैना गांव वालों ने रेलवे बोर्ड से इस मामले की शिकायत की। जिसके बाद से ही यह मामला अधर में लटका हुआ है। ऐसे में रेलवे स्टेशन का कोई नाम ना होने के कारण यात्रियों को इसके कारण काफी परेशानी होती है।
झारखंड की राजधानी रांची से टोरी जाने वाली ट्रेन जब लोहरदगा के आगे गुजरती है तो एक ऐसा रेलवे स्टेशन आता है जिसका कोई नाम नहीं है। इस रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में जो यात्री चढ़ते हैं उनके पास बड़कीचांपी का टिकट होता है, लेकिन रेलवे स्टेशन पर नाम का कोई साइन बोर्ड नहीं मिलता। साल 2011 में इस स्टेशन से पहली बार ट्रेन का परिचालन हुआ था। उस दौरान रेलवे ने इस स्टेशन का नाम बड़कीचांपी रखना चाहा, लेकिन कमले गांव के लोगों ने इसका विरोध किया। कमले गांव के लोगों का कहना है कि इस रेलवे स्टेशन के लिए उन्होंने जमीन दी थी उन्हीं के गांव वालों ने इस स्टेशन के निर्माण के दौरान मजदूरी की थी। इसके कारण इसका नाम कमले होना चाहिए। इस रेलवे स्टेशन पर आस पास के करीब दर्जन भर गांव वाले लोग अपने गंतव्य पर जाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। हालांकि रेलवे के दस्तावेजों में इस स्टेशन का नाम बड़कीचांपी ही है।