ग़ालिब की गज़लों में वेदांत दर्शन भी : फ़ुरकान
जवाहर कला केंद्र ( JKK Jaipur ) के रंगायन सभागार ( JKK Rangayan ) में रविवार को दो रोज़ा सेमिनार ‘इक्कीसवीं सदी में ग़ालिब’ ( Mirza Ghalib ) के दूसरे दिन रविवार को तीन इजलास ‘सत्र’ में उर्दू के विद्वानों ने मक़ाले (पत्रवाचन) पढ़े। पहले इजलास में जहां उदयपुर के उर्दूदां फ़ुरकान खान ( Furqan Khan ) का मक़ाला काबिले दाद रहा, वहीं जयपुर के अब्दुल मन्नान खान, दिल्ली के मोहम्मद काज़िम, प्रो. अली अहमद फातमी के मक़ाले भी पुरअसर रहे। इस इजलास की सदारत प्रो. ख्वाज़ा इकराम ने की।
ग़ालिब की गज़लों में वेदांत दर्शन भी : फ़ुरकान
उदयपुर ( Udaipur ) के उर्दूदां फ़ुरकान खान ( Furqan Khan ) ने ‘ग़ालिब और फिक्र ऐ ग़ालिब’ विषय पर अपना मक़ाला (पत्र) पढ़ते हुए ग़ालिब के बारे में नई बात पेश की कि वे वही बात कहते थे जो आदि शंकराचार्य के वेदांत दर्शन में है।
फ़ुरकान ने बताया कि ग़ालिब की ग़ज़लों में जिसे तसव्वुफ़ (अध्यात्म) का रंग कहा जाता है उसका स्रोत मात्र इस्लामिक तसव्वुफ़ ही नहीं, बल्कि उसके संकेत वेदांत दर्शन में भी मिलते हैं। उन्होंने बताया कि ग़ालिब के कई अशआर में आदि शंकराचार्य और रामानुज के वेदांत दर्शन की रहस्यपूर्ण एवं सटीक अभिव्यक्ति भी मिलती है। उन्होंने ग़ालिब के शेर
असल ऐ शूहूद शाहिद ओ मशहूद एक हैं
हैरां हूं फिर मुशाहिदा है किस हिसाब में
(शूहूद = ज्ञान, शाहिद = ज्ञाता, मशहूद = ज्ञेय, मुशाहिदा = अनुभव / देखने की प्रक्रिया)
की बानगी देते हुए बताया कि मुशाहिदा में ग़ालिब अद्वैत वेदांत के मूल मंत्र
“ज्ञान, ज्ञाता ज्ञेय एक हैं” को स्थापित पाते हैं। फ़ुरकान ने कहा, जैसे अद्वैत वेदांत में जगत को मिथ्या माना गया है, वैसे ही ग़ालिब के कई शेरों में जगत को मिथ्या ही बताया गया है…
हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो ‘असद’
आलम तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है…
(हलक़ा ऐ दाम ए खयाल = खयालों का जाल मतलब भ्रम)
खान के अनुसार ग़ालिब तर्कयुक्त बुद्धि के स्वामी थे। वह किसी भी बात को बिना अपने मस्तिष्क में परीक्षण किए नहीं मानते थे। उनका मंतकी (तर्कपूर्ण) जेह्न उनको सच्चाई तक पहुंचने में बहुत मदद करता था या तो वो किसी बात को स्वीकार कर लेते थे या फिर उस पर सवालिया निशान लगा शेर के माध्यम से प्रस्तुत करते थे। उनका जेह्न एक तरफा बात को कभी स्वीकार नहीं करता था। इसीलिए उन्होंने सवाल किया…
पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पे नाहक़
आदमी कोई हमारा दम ऐ तहरीर भी था
(दम ऐ तहरीर = लिखने के समय)
फ़ुरकान खान का मानना था कि गालिब के अशआर में मानवियत (अर्थपूर्णता) की कई तहें (परतें) हैं इसलिए किसी एक ही अर्थ पर व्याख्याकारों को सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्होंने ये गुज़ारिश भी कि ग़ालिब के कलाम के नए नए अर्थ तलाश किये जाते रहने चाहिए ।
खुद ग़ालिब ने ही कहा है…
गंजीना ऐ मायनी का तिलिस्म उसे समझिए
जो लफ्ज़ क ग़ालिब मेरे अशआर में आए…
गंजीना = ख़ज़ाना
इस मक़ाले में फ़ुरकान खान ने ग़ालिब के तसव्वुफ़ (अध्यात्म) का छिद्रान्वेषण कर खूब दाद पाई।
तो, डॉ.खालिद मेहमूद की सदारत में हुए दूसरे इजलास में जयपुर के डॉ. शहिद जमाली, इलाहाबाद की शाजली खान और दिल्ली के डॉ.खालिद अल्वी ने मक़ाला पेश किया। यह सत्र भी पुरसुकून और ज्ञान से भरपूर रहा।
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