जब कहानी खत्म हुई तो उस पर राइटर के फोन नम्बर थे, मैंने फोन कर कहा कि विशाल भारद्वाज का नाम सुना है, चरण ने कहा कि इन्हें कौन नहीं जानता। फिर मैंने कहा कि मैं विशाल ही बोल रहा हूं और आपकी कहानी ‘दो बहने’ ने मुझे बहुत हंसाया, यह तो फिल्म की कहानी है, इस पर काम करते है। इसके बाद हमारी मिटिंग आठ साल पहले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ही हुई और यहीं से मैंने फिल्म पर काम करना शुरू किया।
चरण सिंह पथिक ने कहा कि जेएलएफ में जब हम मिले थे, तब विशाल सर की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी। मैं धीरे से पहुंचा और इनके हाथ लगाते हुए कहा कि सर मैं चरण सिंह पथिक। तब सर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को बीच में रोकते हुए कहा कि मुझे मेरा प्रेमचंद मिल गया है, प्रेस कॉन्फ्रेंस होती रहेगी। हम थोड़ा आगे बढ़े वहां हमें शीला दीक्षित और उनके बेटे मिले, उन्होंने विशाल सर को चाय पर आमंत्रित किया, उस वक्त भी उन्होंने यही कहा कि आपके साथ दिल्ली में बहुत बार चाय पी ली और भी पी लेंगे, लेकिन अभी मुझे मेरे प्रेमचंद के साथ समय गुजारने दो।
सिनेमा और म्यूजिक ने साहित्य को सही दिशा दी है
विशाल ने कहा कि यह बात सही है कि अच्छी कहानियां फिल्ममेकर्स तक पहुंचना मुश्किल है, लेकिन यह भी सही है कि सिनेमा और म्यूजिक ने साहित्य को नई दिशा भी दी है। मुझे देवदास से बेहतर देवडी लगी है और अच्छा सिनेमा ही है। उन्होंने कहा कि आज अंगे्रजी में बात करो तो इंटिलिजेंट का दर्जा मिलता है और हिन्दी में बात करो तो अनपढ़ समझा जाता है।
यह मानसिकता समाप्त करनी होगी और इसके लिए सिनेमा एक महत्वपूर्ण कड़ी है। मुझे तो हिन्दी से इतना प्रेम है कि जब कन्हैया कुमार बोलता है तो लगता है कि कोई आदमी है, जो हमारी बात कर रहा है।
एक सवाल के जवाब में विशाल ने कहा कि रेखा भारद्वाज दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टार सिंगर थी और उसे इम्प्रेस करने के लिए ही मैं म्यूजिक कंपोजर बना था, नहीं तो मैं एक क्रिकेटर बनने का प्लान कर रहा था। चरण के साथ एक कहानी पर और काम कर रहे हैं।
गांव में रहकर एक्ट्रेस ने ली ट्रेनिंग
चरण ने कहा कि यह फिल्म लोक संस्कृति को बयां करती है और इसके लिए टीम के एक-एक सदस्यों ने मेहनत की है। राधिका और सान्या ने पूरे एक हफ्ते गांव में रहकर वहां के तौर-तरीके सीखने के लिए ट्रेनिंग ली थी, जिसमें वे गोबर भी उठाती थी, तो भेंस का दूध भी निकालती थी। यह फिल्म मेरे गांव में ही शूट हुई है और जब राधिका और सान्या कूए पर पानी लेने जाती थी, तो गांव के लोग पूछते थे कि चरण ने इतनी जल्दी दो नई बहू कहां से ले आया।
चरण ने कहा कि यह फिल्म लोक संस्कृति को बयां करती है और इसके लिए टीम के एक-एक सदस्यों ने मेहनत की है। राधिका और सान्या ने पूरे एक हफ्ते गांव में रहकर वहां के तौर-तरीके सीखने के लिए ट्रेनिंग ली थी, जिसमें वे गोबर भी उठाती थी, तो भेंस का दूध भी निकालती थी। यह फिल्म मेरे गांव में ही शूट हुई है और जब राधिका और सान्या कूए पर पानी लेने जाती थी, तो गांव के लोग पूछते थे कि चरण ने इतनी जल्दी दो नई बहू कहां से ले आया।