न्यायाधीश मनीष भंडारी ने यह अंतरिम आदेश समता आंदोलन समिति जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कालूलाल भील व अन्य की याचिका पर दिए। याचिका में सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के नवंबर 2016 के मीणा उपनाम से बने हुए जाति प्रमाण-पत्रों को मीना नाम से बदलने पर सितंबर 2014 से लगी रोक हटाने वाले आदेश को चुनौती दी है।
याचिका में कहा है कि राजस्थान में मीणा जाति वाले अनुसूचित जनजाति में नहीं बल्कि सामान्य या अनारक्षित वर्ग में आते हैं। केंद्रीय जनजाति मंत्रालय यह स्पष्ट कर चुका है और राज्य की अनुसूचित जाति की सूची में भी मीणा जाति शामिल नहीं है। इसके बावजूद मीणा जाति वालों को अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र दिए जा रहे हैं। एेसे सभी जाति प्रमाण पत्र रद्द किए जाएं और साथ में मीणा से मीना में उपनाम बदलकर बनाए गए प्रमाण पत्र भी रद्द किए जाएं।
केंद्र सरकार कह चुकी है कि मीणा जाति अनुसूचित जनजाति नहीं है और राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ इसी आधार पर मीणा जाति वालों की ओर से एससी एसटी एक्ट में दर्ज करवाए गए आपराधिक मामलों पर रोक लगा चुकी है।