scriptआखिर दागी क्यों होता है ‘जिताऊ’ | Why tainted politician is winnable | Patrika News
जयपुर

आखिर दागी क्यों होता है ‘जिताऊ’

बदलाव की असली ताकत तो जनता के पास है

जयपुरSep 26, 2018 / 02:07 am

anoop singh

jaipur

आखिर दागी क्यों होता है ‘जिताऊ’

सुप्रीम कार्ट की संविधान पीठ ने आखिर फैसला दे दिया है। दाग अच्छे नहीं। सियासत में दागियों की घुसपैठ को रोकने के लिए संसद कानून बनाए। यानी सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा पार नहीं करते हुए व्यवस्थापिका के पाले में गेंद डाल दी है। संसद इसमें पहल करे। चुनाव लडऩे के अधिकार से किसी को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन चुने हुए जनप्रतिनिधि ही ये कानून बनाएं कि गंभीर किस्म के अपराध के आरोप वाले दागियों की लोकतंत्र के मंदिर में नो एंट्री हो। ये किसी से छिपा नहीं कि गंभीर आरोपों वाले नेता चुने जाते हैं। और सबसे बड़ा विरोधाभास है कि राजनीतिक पार्टियों की नजर में ये जिताऊ उम्मीदवार होते हैं। यानी राजनीति में उतर जाओ और सौ खून माफ। पार्टियां गीत गाती हैं कि आखिर राजनीति में जीत जरूरी होती है, इसलिए दागियों से कैसा परहेज। इसी से जुड़ा सवाल है कि क्या राजनीति में दाग अच्छे होते हैं? दागी के पास क्या जीत के लिए जरूरी साम-दाम-दंड-भेद का फॉर्मूला होता है? धनबल और भुजबल ही क्या आज के लोकतंत्र के लिए एकमात्र सीढ़ी है? नेताओं के पास लचर सा तर्क होता है, हमारे खिलाफ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण मामले दर्ज होते हैं। शायद इस तर्क को वोटर भी स्वीकृति देता है। वोट भी तो डालता है। कई नेता तो जेल से चुनाव जीत जाते हैं।
क्वालिटेटिव जनमत हो अहम
लोकतंत्र भले ही आंकड़ों का खेल है। जिसके पास ज्यादा वोट वो ही विजेता। लेकिन क्या ये असल जनमत का प्रतीक है। क्वालिटेटिव जनमत भी काउंट होना चाहिए। भारतीय राजनीति में कुछ संगठनों और व्यक्तियों के द्वारा बदलाव की पहल की गई। शुरुआत में लोगों का समर्थन भी मिला लेकिन इनमें से अधिकांश नंबर गेम में हार गए। बदलाव का प्रयास करने वालों के क्वालिटेटिव वोट्स कहीं काउंट ही नहीं पाए।
अब जनता की बारी है
सुप्रीम कोर्ट ने तो आदेश दे दिया है कि अखबार और अन्य प्रचार माध्यमों से ये प्रचार किया जाए कि अमुक उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। एक नहीं तीन बार। राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर भी ये घोषणा करें कि अमुक उम्मीदवार दागी है। लेकिन ये जनता के पास अधिकार है कि ऐसे दागियों को करारा सबक सिखाए। क्योंकि वोट का बटन दबाने का अधिकार तो जनता के पास सुरक्षित है।
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