मां ने नहीं छोड़ा अपना प्रयासपरिवार बड़ा होने के कारण घर का खर्च भी जैसे-तैसे चलता था। इसलिए बेटी का इलाज करवाने के लिए परिवार किसी बड़े अस्पताल के खर्चों को वहन नहीं कर सकता था। इसलिए मां सप्ताह में दो बार 50 मील दूर अस्पताल के चक्कर लगाती थी। डॉक्टर कुछ एक्सरसाइज बताया करते थे। दो साल तक यही क्रम चलता रहा। पूरा परिवार अब इनका ध्यान रखा करता था। मां का आत्मविश्वास और बेटी के हौंसलों से अब पैरों में जान आने लगी थी। 12 साल की उम्र में बे्रसेस के चलने लगी थी। 13 साल की उम्र में अपने भाई-बहिनों के साथ खेलना शुरू कर दिया था। अब वह स्कूल भी जाया करती थी।दौडऩे में आता था मजाजब ये अपने पैरों पर चलने लगी तो दौड़ लगाने का प्रयास करती, कई बार उन्हें चोट भी आती। जब कभी ये खुद को निराश महसूस करती तो मां मजबूती से साथ खड़ी नजर आती और फिर से प्रयास करना शुरू कर देती। एक बार स्कूल में खेल प्रतियोगिता रखी गई। इन्होंने भी दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे अंतिम स्थान पर आई। इसके बाद कभी हार नहीं मानी और लगातार दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया करती थी। हर बार हारने के बाद भी वह कोशिश करती रही। फिर एक दिन वह भी आया जब इन्होंने दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रेजुऐशन के लिए टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहां इनकी मुलाकात कोच एड टेम्पल से हुई। कोच को जब इनकी क्षमताओं का पता चला तो उन्होंने ट्रेन करना शुरू किया।[typography_font:18pt;” >इनका जन्म 1940 में अमरीका के टेनेसी प्रांत में एक गरीब परिवार में हुआ था। पिता ने दो विवाह किए थे। इस तरह 22 भाई-बहिनों में इनका नबंर 20वां था। इनके जन्म के कुछ समय बाद ही परिवार दूसरे शहर में चला गया। यहीं ये पली-बढ़ी और शिक्षा प्राप्त की। अश्वेत परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में ही इन्हें कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा। मां घर-घर जाकर काम करती तो पिता कुली का काम किया करते थे। एक बार बचपन में इनके पैरों में बहुत तेज दर्द हुआ। जब इन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि इन्हें पोलियो हो गया है। अब ये केलिपर्स के सहारे चलती थी। डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया था कि वे कभी चल नहीं पाएगी। जब ये अपने भाई-बहिनों को खेलते देखती तो बहुत दुखी हो जाती थी। एक दिन वह रोने लगी। मां के पूछने पर उसने बताया कि उसका मन भी खेलने का करता है लेकिन अब वह कभी खेल नहीं पाएगी। तब मां ने कहा कि उसे अपनी बेटी पर गर्व है और एक दिन वह समय भी आएगा, जब वह अपने पैरों से दौड़ेगी। मां हमेशा बेटी का आत्मविश्वास बढ़ाया करती थी।चढ़ती गईं सफलता की सीढिय़ांट्रेनिंग के दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं था, जब इन्होंने अपनी प्रैक्टिस मिस की हो। अपनी मेहनत और कोच के मार्गदर्शन में जल्द ही इन्होंने यूथ ओलंपिक टीम में अपनी जगह बना ली थी। 1956 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हुए ओलंपिक्स में उन्होंने 400 मीटर रिले रेस में ब्रोंज मेडल जीता। 1960 में रूस में हुए ओलंपिक में वे पहली अमरीकन महिला बनी, जिन्होंने एक ही ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल जीते। उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर रिले रेस जीती और दुनिया की सबसे तेज दौडऩे वाली महिला बनीं। यह महिला कोई और नहीं, बल्कि 60 के दशक की सबसे तेज धाविका विल्मा रुडोल्फ है। अपनी इन उपलब्धियों को श्रेय विल्मा ने हमेशा अपनी मां को दिया, इनका कहना था कि यदि मां ने त्याग नहीं किया होता तो आज वे इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती। 1994 में विल्मा ने दुनिया को अलविदा कहा।