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जयपुर

हादसे के बाद इन सावधानियों से बचा सकते हैं किसी का जीवन

दुनियाभर में दुर्घटनाओं और चोट से हर साल करीब ५० लाख लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है। भारत में यह आंकड़ा 10 लाख से अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मृत्यु एवं दिव्यांगता का सबसे प्रमुख कारण ट्रॉमा यानी आघात है। यदि दुर्घटना के बाद पीडि़त को तत्काल चिकित्सकीय सहायता मिल जाए तो मृत्यु के इस आंकड़े को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है। मुश्किल परिस्थितियों से निपटने एवं लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ही हर साल 17 अक्टूबर को ‘वल्र्ड ट्रॉमा डे’ मनाया जाता है।

जयपुरNov 24, 2020 / 02:55 pm

Archana Kumawat

हादसे के बाद इन सावधानियों से बचा सकते हैं किसी का जीवन

हादसे के बाद इन सावधानियों से बचा सकते हैं किसी का जीवन

शारीरिक, मानसिक क्षति
किसी व्यक्ति को अचानक से लगने वाला गहरा आघात या क्षति ही ट्रॉमा है। यह क्षति शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक किसी भी रूप में हो सकती है। किसी भी हादसे में दिमाग पर चोट लगना और मानसिक आघात का जोखिम सबसे ज्यादा होता है, जिससे व्यक्ति लकवा का भी शिकार हो सकता है। समय पर इलाज से ट्रॉमा से बचा जा सकता है।

सडक़ दुर्घटना बड़ी वजह
ट्रॉमा के पीछे विश्वभर में सडक़ दुर्घटना सबसे प्रमुख कारण है। राजमार्ग एवं परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर घंटे सडक़ दुर्घटना में करीब 17 लोग मर जाते हैं। शारीरिक और मानसिक चोट, रोग, तनाव, प्राकृतिक आपदाएं, आग, जलना, गिरना, हिंसा की घटनाएं आदि भी ट्रॉमा केकारण हैं।

भावनात्मक सहयोग उबार सकता है ट्रॉमा से
कुछ हादसों की वजह से कई बार व्यक्ति को शारीरिक क्षति के साथ मानसिक आघात भी होता है। मेंटल ट्रॉमा, ट्रॉमा से संबंधित तनाव होता है, जिसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहा जाता है। ऐेसे में यह बहुत जरूरी है कि शारीरिक क्षति के उपचार के साथ पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस का भी इलाज किया जाए। परिवार एवं सामाजिक सहयोग से व्यक्ति को मानसिक तनाव से बाहर निकाला जा सकता है।

घायल को संभालें, अकेला न छोड़े
दुर्घटना के बाद पुलिस एवं एंबुलेंस को तुरंत फोन करें।
घाव से बहते हुए खून को रोकने के लिए पट्टी या कोई कपड़ा बांध दें।
सिर की चोट के साथ गर्दन में भी चोट की आशंका होती है, इसलिए गर्दन का भी ध्यान रखें।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार घायल की मदद करने वाले व्यक्ति पर पुलिस कार्रवाई नहीं होगी। इसलिए घायल की मदद से पीछे नहीं हटें।

सीपीआर देकर बचाया जा सकता है जीवन
घायल व्यक्ति की सांस, हृदय की गति या नाड़ी नहीं चल रही है तो तुरंत सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन) देना बहुत महत्त्वपूर्ण है। व्यक्ति को सीधा जमीन पर लेटा दें। फिर सीने की हड्डी के ऊपर अपने एक हाथ की हथेली के ऊपर दूसरे हाथ की हथेली रखें। करीब 18-20 सेकंड में 30 बार बिना कोहनी मोड़े दो इंच दबाएं। कृत्रिम सांस देने के लिए सिर को सावधानीपूर्वक पीछे करें एवं नाक दबाकर मुंह से सांस दें। यह प्रक्रिया नाड़ी एवं सांस के चालू होने तक दोहराते रहें।

धंसी हुई वस्तु को निकालने का न करें प्रयास

घायल व्यक्ति के शरीर में कोई वस्तु या नुकीली वस्तु धंस जाए तो उसे निकालने का प्रयास न करें। इससे रक्तस्राव बढऩे से व्यक्ति की जान जोखिम में पड़ सकती है।
फ्रैक्चर या जोड़ हिलने की स्थिति में प्रभावित क्षेत्र को हिलने न दें।
व्यक्ति बेहोश है और हृदयगति एवं नाड़ी चल रही है तो उसे आरामदायक स्थिति में करवट से लेटाएं।
हादसे के बाद का एक घंटा घायल के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस दौरान प्राथमिक चिकित्सा देकर उसका जीवन बचाया जा सकता है।

डॉ. वी डी सिन्हा
वरिष्ठ न्यूरो सर्जन, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर
डॉ. राकेश सिंह
न्यूरो सर्जन, आरएमएल मेडिकल इंस्टीट्यूट लखनऊ

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