Millet Production : देश में बाजरे का सबसे ज्यादा उत्पादन राजस्थान में होता है। किसानों के लिए यह फसल काफी फायदेमंद होती है।
जयपुर•Oct 11, 2019 / 05:44 pm•
Ashish
मानसून की मेहरबानी, उत्पादन बढ़ने की उम्मीद
जयपुर
Millet Production : देश में बाजरे का सबसे ज्यादा उत्पादन राजस्थान में होता है। किसानों के लिए यह फसल काफी फायदेमंद होती है। इस बार मानसून के अधिक समय से सक्रिय रहने से राज्य में बाजरे की पैदावार बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि उपज हार्वेस्ट के समय बारिश आ जाने से चारे की कुछ कमी रह सकती है। बाजरा ऐसी उपज है जो पशुओं के लिए भी उपयोगी है। इससे बाजरा के साथ ही अच्छी मात्रा में चारा भी निकलता है। आपको बता दें कि अन्य फसलों के मुकाबले में बाजरा की खेती कम पानी और कम खर्च में कर अधिक पैदावार की जा सकती है। इस वजह से बाजरा को द्वी-परियोजना फसल में शामिल किया गया है। राजस्थान में करीब 45 लाख हैक्टेयर भूमि में बाजरा की फसल की खेती होती है। जोकि देशभर होने वाले बाजरे के उत्पादन का 50 फीसदी हिस्सा है। यानि देशभर में जितना उत्पादन बाजरे का होता है, उसमें से आधा उत्पादन अकेलेे राजस्थान में होता है। राजस्थान में हर साल 40 से 45 लाख क्विंटन उत्पादन होता है। एक आंकड़े के मुताबिक यहां प्रति हैक्टेयर में 10 से 11 क्विंटल उत्पादन हो रहा है।बाजरे का उत्पादन बढ़ने के पीछे एक मुख्य वजह यह भी है कि पिछले कुछ सालों में कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधानों के बाद बाजरे की कई अच्छी किस्मों का विकास हुआ है। खाद और पानी उपलब्धता से भी पैदावार में बढ़ोतरी हो रही है।
मानसून से होगा फायदा
आपको बता दें कि बाजरे की फसल 70-80 दिन में तैयार हो जाती है। इस बार मानसून के अधिक समय तक सक्रिय रहने से राजस्थान में अच्छी बारिश हुई है। इस वजह से उत्पादन में भी बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि कई क्षेत्रों में कटाई के दौरान बारिश से चारे को नुकसान हुआ है। ज्यादात्तर बाजरे की खेती पश्चिमी राजस्थान (बीकानेर, नागौर, जैसलमेर, जोधपुर जिले ) में होती है। जबकि सर्वाधिक उत्पादन पूर्वी राजस्थान में होता है। क्योंकि यहां पानी की उपलब्धता के साथ-साथ किसान उर्वरक, बीज का भी विशेष खयाल रखता है।
अब तक 13 किस्म विकसित
दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक और अखिल भारतीय अनुसंधान बाजरा परियोजना के प्रभारी डॉ एलडी शर्मा का कहना है कि बाजरा प्रदेश के लिए अनिवार्य फसल है। इसमें कई न्यूट्रिशियंस होते है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी माना जाता है। दुर्गापुरा अनुसंधान केंद्र में इसको लेकर 1977 से काम किया जा रहा है। खासतौर पर शीघ्र पकने वाली फसल, चारा उत्पादन और बीमारियों की रोकथाम पर फोकस किया जा रहा है। अब तक यहां से 13 किस्में तैयार कर चुके है। हाल हीं नई किस्म आरएचबी 223, 234 भी चिन्हित की गई है। यह मध्यम समय के पकने वाली फसल के लिए उपयोगी साबित होगा। इसका बीज कृषक को अगले साल तक उपलब्ध हो सकेगा।