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जैसलमेर

बम हो गए थे बेदम, अब कोरोना को भी किनारे करेगी माता

-सरहद के बाशिंदे महामारी से मुक्ति के लिए बांधेंगे रुमाल सरहदी के बाशिंदों का तनोट माता पर विश्वास कि माता करेगी आपदा से रक्षा-यहां वर्ष 1971 के युद्ध ऐतिहासिक विजय के बाद बढ़ा विश्वास

जैसलमेरOct 16, 2020 / 09:03 pm

Deepak Vyas

बम हो गए थे बेदम, अब कोरोना को भी किनारे करेगी माता

बम हो गए थे बेदम, अब कोरोना को भी किनारे करेगी माता

जैसलमेर. शारदीय नवरात्रि पर्व को लेकर तनोट माता मंदिर में एक बार फिर आस्था व श्रद्धा की सरिता प्रवाहित होनी शुरू हो गई है। कोरोना काल में लंबे समय तक मंदिर बंद थे, लेकिन अब दर्शनार्थ खुल गए हैं। सरहद के बाशिंदे तनोट माता से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि जिस तरह पड़ौसी मुल्क के बरसाए बमों से सरहद के बाशिंदों की उन्होंने रक्षा की, उसी तरह कोरोना वायरस भी दुश्मन के बरसाए बमों की तरह बेदम हो जाए। जैसाण के बाशिंदों को विश्वास है कि कोरोना वायरस की आपदा को तनोट माता किनारे जरूर लगाएगी। सरहद से महज १८ किलोमीटर पहले विशालकाय तनोट मंदिर में आज यात्रियों की सुख-सुविधा मौजूद है। तनोट माता के भक्त मंदिर में रुमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का आभार व्यक्त करने वापिस दर्शनार्थ आते हैं और रुमाल खोलते हैं। इस परम्परा का आम लोगों के साथ यहां आने वाले मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, सेना व सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी व जवान भी निर्वहन करते हैं। नवरात्रा के दिनों में यहां पो फटते ही समूचा माहौल धार्मिक हो जाता है। उधर, सीमा सुरक्षा बल के जवानों को तनोटराय देवी पर पूर्ण भरोसा है कि, कैसे भी संकट के समय वह उनकी रक्षा करेगी।
यहां बमों का निकल गया था दम
गौरतलब है कि यहां पर १९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से करीब ३ हजार बम बरसाए गए थे, लेकिन वे फट नहीं पाए।उनमें से ४५० जिंदा बम आज भी मंदिर में माता के साक्षात चमत्कार के तौर पर सजा कर रखे गए हैं। रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की महत्ता इतनी अधिक है कि जैसलमेर की यात्रा पर आने वाले राजनेताओं से लेकर आला अधिकारी और आम पर्यटक से लेकर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों के लोग, वे उत्कट श्रद्धा-भावना के साथ दर्शन करने जरूर पहुंचते हैं।
हिफाजत करती है तनोट माता
सरहदी पर चौकसी करने वाले सीसुब के जवानों का मानना है कि जिले में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा की निगहबानी का काम सीमा सुरक्षा बल जितना बखूबी निभा रहा है, बल की उतनी ही हिफाजत सरहदी क्षेत्र में चमत्कारिक तनोटराय माता करती है।
शहर से दूरी, सुविधाएं पूरी
सरहद से चंद किलोमीटर पहले बने तनोट माता मंदिर का स्वरूप निखरा है और यात्रियों के लिए सुविधाएं भी बढ़ी हैं। आवासगृह से लेकर भोजनशाला तक सब यहां बन चुकी है। सीमा व जैसलमेर जिला मुख्यालय से १२० किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है।
यह है मंदिर का इतिहास
-तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने विक्रम संवत्ï ७८७ को माघ पूर्णिमा के दिन बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था।
-मौजूदा समय में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
-पाकिस्तान के हजारों बम जिस मंदिर परिसर में बेदम हो गए थे।
-ऐसे चमत्कारी स्थल का दर्शन करने पाक सेना का ब्रिगेडियर शाहनवाज खान भी १९६५ युद्ध के बाद पहुंचे थे।
-बताते हैं कि खान ने भारत सरकार से अनुमति लेकर यहां माता की प्रतिमा के दर्शन किए थे और चांदी का एक सुंदर छत्र भी चढ़ाया।
-ब्रिगेडियर खान का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी माता के चमत्कार के आगे दुश्मन देश के समर्पण की कहानी खुद कहता है।

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